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उतगध्ययन
आयामक, सौवीर, यवोदन, शीत यवोदक नीरस ही ।
मिलने पर हीले न, प्रान्त कुल में जाए जो भिक्षु वही ॥१३॥ सुर नर तिर्यञ्चो के अमित भयंकर रौद्र व अद्भुत ही ।
विविध शब्द सुनकर भी न डरे, होता जग मे भिक्षु वही ॥१४॥ विविध वाद लख, कोविद, प्राज्ञ रहे मुनियो के साथ यही ।
जित्परिषह, समदर्शी, शान्त, करे अपमान न, भिक्षु वही ।।१५।। अशिल्प-जीवी, मुक्त, अमित्र, जितेन्द्रिय, गेह छोडकर ही । । मद-कषाय स्वल्प-लघु भुग एकाकी विचरे भिक्षु वही ॥१६॥