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अ० १६ ब्रह्मचर्यं समाधि - स्थान
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धर्म-पथिक धृतिमान तथा फिर धर्माराम - रक्त मुनि दान्त । ब्रह्मचर्य सुसमाहित् धर्म-बगीचे मे विचरे उपशान्त ॥ ५५ ॥ सुर, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर प्रणाम न करते । दुष्कर ब्रह्मचर्य व्रत पालक के चरणो मे सिर धरते ॥ ५६ ॥ जिन - देशित यह धर्म नित्य है, शाश्वत है ध्रुव है इससे । सिद्ध अनेक हुए, होते है, होंगे मैं कहता तुमसे || ५७ ॥
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