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जिसमें अनोय कसमुचि यम् । ति बिस्ती बाला सुनिवर ॥॥
म०.२: महानिर्ग्रन्थीय मुनि के द्वारा- ऐसे ...अश्रुतपूर्व - कहे जाने पर शब्द। ..
अति व्याकुल आश्चर्य मग्न होकर रह गया नराधिप स्तब्ध ॥१३॥ घोड़े, हाथी, - मनुज, नगर, अन्तःपु,र फिर आज्ञा, ऐश्वर्य। ..ये मेरे हैं .- पास, मनुज-भोगो को भोग रहा मुनिवर्य ॥१४॥ जिसने, भोग समर्पित : मुझे किए, वैसी सम्पदा प्रवर । । : मैं अनाथ कैसे हूँ-भगवन् ! मत असत्य बोलो मुनिवर । ॥१५॥ अर्थोत्पत्ति-- अनाथ शब्द की, पार्थिव! नही जानता तू।. .. ... जैसे होता नाथ, अनाथ, न वैसे भूप !... 'जानता तू ॥१६॥ अव्याकुल - मन से सुन मुझसे ज्यो अनाथ होता: नरताज | 1. • जिस आशया से मैंने उसका किया प्रयोग यहाँ अधिराज ॥१७॥ प्राक्तन नगरों में प्रति सुन्दर-- कौशाम्बी. नगरी में वास '' - करते मेरे पिता, प्रचुर धन का सचय है उनके पास ॥१८॥ युवा अवस्था मे मेरी आँखो मे. पीडा हुई, अतुल-1 .: . पार्थिव ! सारा गात्र जलन को पीडा से जल उठा विपुल ॥१६॥ तीखे शस्त्रों को घुसेडताः तन-छिद्रो में कुपित अरि।, -.. , त्यो मेरी आँखों की पीड़ा अति असह्य होकर उभरी-॥२०॥ कटि मस्तक फिर हृदय वेदना अति दारुण प्रस्फुटित हुई।... - इन्द्र-वज्र लगने, पर ज्यो वह घोर रूप से, उदित हुई ॥२१॥ विद्या-मत्र-चिकित्सक, शास्त्र-कुशल अद्वितीय भिषगाचार्य । ..., :: मंत्र-मूल सुविशारद हुए उपस्थित मेरे खातिर आर्य ॥२२॥ ज्यो मेरा हित हो, त्यो चतुष्पाद मय-किया इलाज प्रवर। --
दुःख-मुक्त कर सके न वे, मेरी अनाथता यह नरवर ॥२३॥ मेरे पितुर्वर ने ' उनको बहुमूल्य वस्तुएँ दी खुलकर ।
दुःख-मुक्त कर सके नवे, मेरी 'मनाथता यह नरवर ॥२४॥ मेरी माता , पुत्र-शोका दुःखात . रो रही बाढ स्वर । - । दुःखामुक्त कर, सको न वह, मेरो अनाथता-यह- नरवर ! ॥२५॥ ज्येष्ठ कनिष्ठः सहोदर' मेरे, एक-एक से थे. बढकर । - - दुःख-मुक्त कर सके न वे; मेरी- अनाथता यह नरवर ! ॥२६॥