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तेईसवां अध्ययन
केशी-गौतमीय धर्म तीर्थ के महा प्रवर्तक जिन सर्वज्ञ लोक-पूजित थे ।
सबुद्धात्मा पार्श्व नाम के अर्हन् हुए, राग-विरहित थे ॥१॥ -लोक-प्रकाशन पार्श्वनाथ के केशी नामक शिष्य हुए।
' विद्याचरण पारगामी व यशस्वी कुमार-श्रमण हुए ॥२॥ मति श्रुत अवधिज्ञान-प्रबुद्ध व शिष्य सघ-परिवत सचरतें। .'' श्रावस्ती ' पुर मे आए ग्रामानुग्राम वे हुए विचरते ॥३॥ "उस नगरी के समीप तिंदुक नाम रम्य उद्यान जहाँ। १ ,प्रासुक शय्या, संस्तारक लेकर ठहरे आचार्य वहाँ ॥४॥ उसी समय' मे सर्व लोक-विश्रुत जिन वर्धमान भगवान। - - । . धर्म तीर्थ के महा प्रवर्तक विचर रहे थे, सूर्य समान ।।५।। लोक-प्रकाशक वर्धमान के महा यशस्वी शिष्य-प्रधान । · विद्याचरण पारगामी गौतम नामक थे वे भगवान ॥६॥ द्वादशाङ्ग-विद् बुद्ध तथा फिर शिष्य-सघ-परिवृत संचरते। -: 5:. वे भी श्रावस्ती - पुर में पाए ग्रामानुग्राम · विचरते ॥७॥ उस नगरी के समीपवर्ती कोष्ठक , नामक था उद्यान ।
प्रासुक शय्या सस्तारक ले, ठहरे गौतम वहां सुजान ॥८॥ महायशस्वी “केशीकुमार-श्रमण और गौतम गणधर । ११ आत्म-लीन, सुसमाहित दोनो वहा विचरने लगे प्रवर ॥६॥ उभय ओर के श्रमण तपस्वी शिष्य समूहो को सर्वत्र । । तर्क एक उत्पन्न हुआ त्रायी गुणियो के मन मे तत्र ॥१०॥ 'धर्म हमारा यह कैसा ? फिर इनका कैसा है यह धर्म। - १. इनकी व हमारी आचारिक-धर्म-व्यवस्था का क्या मर्म ॥११॥ महा यशस्वी पार्श्वनाथ ने चातुर्याम यह धर्म, कहा। . . 11 वर्धमान मुनि का फिर यहां पंच-शिक्षात्मक धर्म रहा ॥१२॥