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अ० १६ : मृगापुनीय
१२५ जो संबुद्ध विचक्षण पंडित इस भाँति नित करते हैं।
भोगों से उपरत बन, मृगापुत्र ऋषि ज्यों शिव वरते हैं ॥६६॥ महायशस्वी प्रभावशाली मृगापुत्र का कथन श्रवण कर। तप-प्रधानाचरण, त्रिलोक-प्रथित-उत्तम गति को भी सुनकर ।।६७॥ दुखवर्धक धन को, ममता, बन्धन को, महा भयद पहचान ।
सुखदअनुत्तर मोक्षद धर्मधुरा महान धारो मतिमान ॥१८॥