________________
'इक्कीसवाँ अध्ययन
समुद्रपालीय . चपानगरी मे पालित नामक श्रावक बणिया था एक ।
महावीर भगवान महात्मा का सुशिष्य विनयी सुविवेक ॥१॥ वह श्रावक निर्ग्रन्थ शास्त्र-कोविद था जीवन स्तर ऊँचा।
करता वह व्यापार पोत ' से पिहुण्ड मे जा पहुंचा ॥२॥ वहाँ वणिज करते को किसो बणिक ने निज कन्या ब्याही।
हुई गर्भिणी, तदा उसे ले साथ स्वदेश चला राही ।।३।। “पालित की स्त्री ने समुद्र में प्रसव किया है शुभ सुत का।
वही जन्म होने पर नाम रखा कि समुद्रपाल' उसका ॥४॥ चम्पा' को निर्विघ्न प्राप्त कर वह श्रावक आया घर पर।
सुखपूर्वक सवर्धन होता उस बालक का अपने घर ॥५॥ सीख कलाए द्वासप्तति, फिर नीति-निपुण अति दक्ष बना।
यौवन पाकर रूपवान प्रियदर्शी बना वह मुदितमना ॥६॥ रूपवती रूपिणी वधू को 'ब्याही ' उसे पिता ने देख । ' रम्य महल मे दोगुन्दक' सुर ज्यो क्रीड़ा करतो अतिरेक ।।७।। एक दिवस प्रोसाद-गवाक्ष-स्थिते उसने पुर को सपेखा। - वध्य-चिन्ह युत एक बध्य को पुर बाहर ले जाते देखा ॥८॥ उसे देख वैराग्य हुआ कि समुद्रपाल ऐसे कहता है। __ अहो ! अशुभ कर्मों का यह अवसान दुखद होकर रहता है ।।६।। वही परम सवेग प्राप्त कर वह भगवान प्रबुद्ध हुआ। __ मात-पिता को पूछ शीघ्र प्रवजित सयमी शुद्ध हुआ ॥१०॥ महाक्लेश भय मोहोत्पादक कृष्ण भयावह सग छोड कर।
व्रत, पर्याय-धर्म, शुभ शोल परिपहो मे अभिरुचि ले, यतिवर ॥११॥ सत्य अहिंसा ब्रह्मचर्य अस्तेय व अपरिग्रह मय जान ।
पाच महाव्रत धार जिनोक्त धर्म को समाचरे विद्वान ॥१२॥