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नवॉ अध्ययन विनय समाधि
(चतुर्थ उद्देशक) सुना आयुष्मन् यहा मैंने सही भगवान से।
चार विनय-समाधि पद आख्यात स्थविर महान से ॥१॥ कौन से वे चार विनय-समाधि सुस्थानक अहो।
जो स्थविर भगवान से प्रज्ञप्त हैं मुझसे कहो ॥२॥ चार विनय-समाधि पद ये कहे हैं भगवान ने।
विनय, श्रुत, तप और फिर आचार स्थविर महान ने ॥३॥ जो जितेन्द्रिय विनयश्रुत तप और फिर आचार मे ।
स्वयं को स्थापित करे पडित वही ससार में ॥४॥ चतुर्धा होती विनय सुसमाधि निश्चित तद्यथा।
सुगुरु-शासन श्रवण इच्छुक सम्यगाज्ञा पालता ॥५॥ वेद पाराधे तथा अभिमान मुनि न करे कही।
यही चौथा सुपद है फिर श्लोक भी यह है यही ॥६॥ हित शिक्षा सुनना इच्छे फिर ग्रहे तथा पाचारण करे।
विनय कुशल हू मैं यो आत्मार्थी न कभी अभिमान करे॥७॥ *चतुर्विध है श्रुत समाधि कही स्थविर ने तद्यथा ।
पठन से सद्ज्ञान होगा अत श्रुत को सीखता ।।८।। चित्त की एकाग्रता सुखदायिनी होगी मुदा ।
धर्म स्थित निज को करूंगा मान यो सीखे सदा ॥६॥ अपर को भी स्थित करूँगा सीखता यो जानकर ।
यही चौथा पद यहाँ है श्लोक भी है श्रेष्ठतर ॥१०॥ श्रुत पठन से ज्ञान फिर एकाग्र मन होता प्रवर ।
स्थित व स्थापन करे श्रुत रत हो श्रुतो को सीखकर ॥११॥