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मैं ५ : अकाम-संकाम मरण
जैसा वहाँ औपपातिक स्थल वैसा मैंने सुना सही । निज- कृत कर्मानुसार मृत्यु समय वह पछताता तब ही ॥१३॥ समतल राजपंथ को छोड़ विषम पथ पर चल पडता जान । धुरी टूट जाने पर शोक मग्न होता ज्यो गाडीवान || १४ || त्यो ही छोड़ धर्म को जोकि अधर्म पथ को अपनाता ।
मृत्यु- मह मे पडा अज्ञ शाकटिक भाँति फिर पछताता ॥१५॥
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मृत्यु- समय,भय- त्रस्त बाल फिर मरता है वह मृत्यु- काम । एक दॉव मे ज्यो कि जुआरी दुख पाता धन हार तमाम ।। १६ ।। अज्ञ - जनो की काम-मरण प्रवेदित किया गया पहचान ।
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" पडित जन का सकाम मरण सुनो व मुझ से तुम मतिमान ॥ १७ ॥
पुण्यवान, सयमी, जितेन्द्रिय का जो अनुश्रुत मरण यथा ।
$21 वह प्रसन्न प्रघात - रहित होता है सम्यक् मुझे पता ॥ १८ ॥
क्रमश उत्तम, मोह - रहित, द्युतिमान देव-आकीर्ण विमान ।
सभी साधु या सभी गृहस्थो का न सकाम-मरण होता । क्योकि गृहस्थी विविध शील मुनि समाज विषम चरण होता ||१६|| एक मुनि-जन से भी गृहि-जन होते सयम - उत्कृष्ट |
सभी गृहस्थो से मुनिजन फिर होते हैं आचार - विशिष्ट ॥२०॥ चीवर, चर्म, जटा, सघाटी, सिर-मुडन, नग्नत्व सभी ।
दुष्ट शीलवाले मुनि की रक्षा कर सकते ये न कभी ॥ २१ ॥ भिक्षाजीवी यदि कुशील हो तो न नरक से बच पाता ।
मुनि हो, चाहे गृही, सुव्रती हो तो स्वर्ग पहुच जाता ||२२|| सामायिक अगो का सेवन करे गृही श्रद्धालु सभी । उभय पक्ष पौषध धारे छोड़े न एक दिन रात कभी || २३ || यो शिक्षा से युक्त सुव्रती करता हुआ यहाँ गृहवास । प्रौदारिक तन छोड शीघ्र वह स्वर्गलोक मे करे निवास ||२४|| सवृत भिक्षु उभय गति मे से एक अवश्य प्राप्त करता ।
बने महद्धिक सुर अथवा सब दुःख - मुक्त हो भव तरता ||२५||
होते हैं उनमे रहनेवाले सुर महा यशस्वी जान ||२६||