________________
で
५०
उत्तराध्ययन
प्रज्ञावान सुरो की पल्योपम व सागरोपम स्थिति है ।
उसको कुछ कम सौ वर्षो मे खो देता जो दुर्मते है ||१३|| यथा तीन व्यापारी मूल रकम लेकर के गए विदेश ।
एक कमाकर आया अपर मूल लेकर आया निज देश ॥ १४ ॥ वणिक् तीसरा मूल रकम खोकर थाया है पहचानो ।
यह व्यवहारिक उपमा, धर्म विषय मे इसी भाँति जानो ॥१५॥ नर-भव मूल रकम सम है फिर लाभ देव-गति के सम है ।
मूल नाश से नरक व तिर्यक गति मे जाते ध्रुव क्रम है ॥ १६ ॥ पद-वध-मूलक, दो गतियाँ अज्ञो की होती यह तत्त्व ।
1
क्योकि लोल शठ ने पहले ही हार दिया देवत्व, नरत्व ॥ १७॥
तत द्विविधि दुर्गति मे, हारा हुआ जीव होता है जब ।
दीर्घकाल के बाद वहाँ से बाहर आना है दुर्लभ ॥ १८ ॥ देख विजित को तथा बाल-पडित की तुलना कर सुविशेष ।
नर-भव मे आते वे करते मूल रकम के साथ प्रवेश ॥ १६ ॥ विविध मान वाली शिक्षा से घर पर भी सुव्रत होते है ।
वे नर-भव पाते है क्योकि प्राणिगण कर्म - सत्य होते हैं ||२०|| जो कि विपुल शिक्षाओं से अतिक्रमण मूल का कर सत्वर ।
शीलवान सुविशेष प्रदीन, प्राप्त करता देवत्व प्रवर ॥ २१ ॥ पराक्रमी मुनि या गृहस्थ के फल को विज्ञ मनुज पहचान ।
परास्त होता हुआ स्वय की क्यो न जानता हार महान ||२२|| सिन्धु- सलिल की तुलना मे ज्यो कुशा - अग्र जल - बिन्दु नगण्य | त्यो सुर-भोगो के समक्ष, प्रति तुच्छ भोग ये मानवजन्य ||२३||
कुशाग्र जल सम कामभोग हैं और आयु भी है अत्यल्प |
तो फिर योग-क्षेम को क्यो न जानता यह आश्चर्य अनल्प ॥ २४॥