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उत्तराध्ययन
फोडा अरति अजीर्ण विविध आतङ्क स्पर्श करते स्फुटतर।
क्षीण नष्ट हो रहा गात्र, मत कर प्रमाद गौतम क्षण-भरना२७॥ जल से अलिप्त शारद-कमल भाँति निजे स्नेह भाव हरे 'कर। '
सर्व स्नेह-वर्जित होकर, मत कर प्रमाद गौतम ! क्षण-भर ॥२८॥ तू अनगार-वृत्ति हित घर से निकला स्त्री-धन को तजकर । :
' वान्त भोग फिर से मत पी, मत कर प्रमाद गौतम क्षण-भर ॥२६।। जिन न दीखते आज, एकमत हैं न मार्ग-दर्शक जो नर ।
सप्रति नर्यातृक-पथ है, मत कर प्रमाद गौतम क्षण-भर ॥३०॥ बान्धव मित्र विपुल सचित धन-राशि और सब कुछ तजकर। , ' फिर से इनकी खोज न कर, मत कर प्रमाद गौतम 'क्षण-भर ॥३१॥ कंटकमय पथ छोड विशाल पथ मे आया है चलकर । :
. दृढ निश्चय से उस पर चल, मत कर प्रमाद गौतम क्षण-भर ॥३२॥ अबल भारवाहक की भॉति चले जाना न विषम पथ पर। .
विषम-पथिक पर्छताता, अत न कर प्रमाद गौतम! क्षण-भर।।३३।। महा सिन्धु को तरकर फिर क्यो ठहर गया तट पर आकर। 1. पार गमन-हित जल्दी कर, मत कर प्रमाद गौतम! क्षण-भर ॥३४॥ हो आरूढ़ क्षपक श्रेणी पर पहुचेगा सिद्धि-स्थल पर । -- । जो शिव क्षेम अनुत्तर है, मत कर प्रमाद गौतम क्षण-भर ।।३।। ग्राम नगर में तू सयत उपशान्त बुद्ध हों विचरण कर । --- 2 - ', शान्ति मार्ग कोवढा यहाँ, मत कर प्रमाद गौतम! क्षण-भर ॥३६॥ अर्थ व पद से गोभित सुकथित भगवद् वाणी को सुनकरः।
राग-द्वेष'को छेद, सिद्धि-गति प्राप्त हुए गौतम ,गणधर ॥३७॥