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दीर्घायु व समृद्ध ऋद्धिमान करते हे ऐच्छिक रूप
नोत्पन्न कान्ति वाले वे प्रति तेजस्वी सूर्य स्वरूप ||२७|| सयम तप का कर अभ्यास, उन्हीं स्थानों मे वे जाते हैं ।
मुनि हो चाहे गही किन्तु उपशान्त भाव जो अपनाते है ||२८|| उन सयत, सत्पूज्य, जितेन्द्रिय का स्वरूप सुनकर प्रति स्फीत ।
मृत्यु- समय पर शीलवान बहुश्रुत न कभी बनते भयमीत || २ || निज को तोल, विशेष ग्रहण कर यति धर्मोचित क्षमा वहे ।
तथाभूत आत्मा के द्वारा मेधावी सुप्रसन्न रहे ॥३०॥ तत मृत्यु आने पर गुरु से अनशन श्रद्धाशील ग्रहे ।
कपट - जनित रोमाच दूर कर देह भेद चाहता रहे ॥ ३१ ॥ मे तप के द्वारा करता तन का त्याग सधीर । तीन सकाम-मरण मे से वह किसी एक से मरता वीर ||३२||
उत्तराध्ययन
मृत्यु-समय