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दूसरा अध्ययन परीषह .
भगवत् प्रतिपादित द्वाविंशति परिपह मैंने सुने यहाँ ।
श्री भगवान श्रमण काश्यप प्रभु महावीर ने उन्हे कहा ॥१॥ जिन्हे समझकर, सुनकर, परिचित कर, प्रविजित कर भिक्षु सही।
भिक्षाऽऽटन करते नित स्पर्शित होने पर भी डिगे नहीं ॥२॥ कहो कौन से वे बाईस परिषह यहाँ प्रवेदित हैं।
जो भगवान् श्रमण काश्यप प्रभु महावीर से समुदित हैं ।।३।। जिन्हे समझकर सुनकर परिचित कर प्रविजित कर भिक्षु सही।'
भिक्षाऽऽटन करते नित स्पर्शित होने पर भी डिगे नही ॥४॥ ये है द्वाविंशति परिषह जो महावीर से सुकथित हैं।
श्री भगवान् श्रमण काश्यप के द्वारा जो कि प्रवेदित है ।।५।। इन्हें समझकर सुनकर परिचित कर प्रविजित कर भिक्ष सही।
भिक्षाटन करते ये स्पर्शित होते, फिर भी डिगे नही ।।६।। क्षधा' पिपासा' शीत' उष्ण फिर दश' मशक व अचेल यथा ।
अरति अगना चर्या व निषीधिका परिषह कहा तया ॥७॥ द शैय्या आक्रोश तथा वध दुखद याचना" कष्ट महा ।
फिर अलाभ"रुग्" तृणस्पर्श प्रस्वेद"परिषह स्पष्ट कहा ।।८।। पुरस्कार" सत्कार तत प्रज्ञा प्रज्ञान व दर्शन२२ है।
मुनि-जीवन मे इन सबका नित होता रहता स्पर्शन है ॥६॥ काश्यप ने जो किए प्रवेदित परीषहो के यहाँ विभाग ।
उनका क्रमश प्रतिपादन करता हूँ मुझे सुनो शुभभाग | ॥१०॥ तन मे क्षुधा व्याप्त होने पर भिक्षु बलिष्ठ तपस्वी जो।।
काटे न कटाए व पचन-पाचन को तजे मनस्वी हो ॥११॥
१ कार के २२ अफ परीषहो की सख्या के सूचक हैं।
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