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दशवकालिक
गहन-वन या बीज, हरित व उदक' या उत्तिंग पर।
__ पनक' आदिक पर नहीं ठहरे कभी भी भिक्षुवर ॥११॥ मन-वचन-तन से नही त्रस जीव की हिंसा करे।
देख जग-वैचित्र्य नित सब-भूत-उपरत सचरे ॥१२॥ दया-अधिकारी बना सयत कि जिनको जानकर ।
आठ सूक्ष्मो को निरख शयनासनादि करे प्रवर ॥१३॥ सूक्ष्म आठों कौन से ? यो पूछता सयत यदा ।
कहे मेधावी विचक्षण गुरु उसे ये हैं तदा ॥१४॥ स्नेह, पुष्प व प्राण फिर उत्तिंग चौथा है कहा।
पनक, बीज व हरित अष्टम सूक्ष्म अण्डा है रहा ॥१५॥ जानकर इनको स्वयं सब तरह से सयत तदा ।
अप्रमत्त, समाहितेन्द्रिय करे यतना सर्वदा ॥१६।। करे प्रतिलेखन सदा विधियुक्त कम्बल पात्र की।
सस्तरण, उच्चार-भू, शय्या व आसन मात्र की ॥१७॥ प्रस्रवण, उच्चार, श्लेष्मा, सिंघाण ,स्वेदादिक कही।
देख प्रासुक भूमि को फिर यत्न से परठे वही ॥१८॥ अंशन-पानी के लिए गृहि-सदन मे जाए यदा।
यत्न से ठहरे, कहे मित, रूप-मुग्ध न हो कदा ॥१६॥ बहुत सुनता कान से मुनि आँख से बहु देखता।
पर न सब श्रुत दृष्ट मुनि को है बताना कल्पता ॥२०॥ दृष्ट, श्रुत यदि घातकर हो तो नही बोले अरे।
किसी भी स्थिति मे नही गृहि-योग साधु समाचरे ॥२१॥ सरस नीरस अशन को अच्छा-बुरा बोले नही।
तथा पृष्टाऽपृष्ट लाभाऽलाभ को खोले नही ॥२२॥
यनन्तकायिक वनस्पति । २. सपं के याकारवाली वनस्पति । ३ फूलन या वनस्पति विरोप। ४ जीवों का आश्रय स्थान । ५ नाक फी मैल । ६. पूछने पर या बिना पूछे।