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पूर्व-पश्चात् कृत्य का न हुआ समालोचन सही ।
तो दुबारा प्रतिकमे, व्युत्सृष्ट तन, सोचे यही ||११|| वृत्ति जिन ने असावद्य हो । कही मुनि के लिए ।
मोक्ष साधनभूत साधु-शरीर धारण के लिए ॥६२॥ ध्यान निज नवकार से पारे व जिन - सस्तव करे ।
कुछ करे स्वाध्याय फिर विश्राम कर निज श्रम हरे ||१३|| लाभार्थी विश्राम समय मे करे सुचिन्तन यो हितकर ।
तार दिया यो मानूँ यदि मुनिगण जो कृपा करे मुझ पर । * प्रेम से तव साधुत्रो को निमन्त्रित क्रमश. करे ।
जो करे स्वीकार उनके साथ में भोजन करे ||५|| यदि न स्वीकृत हों तदा श्रालोक-भाजन मे सही ।
यत्न से खाए अकेला गिराए नीचे नही ||१६|| तिक्त, कटुक व कसैला, खट्टा मधुर, लवणमय जो मिलता
हो प्रन्यार्थ प्रयुक्त उसे मुनि मधु घृत सम लख प्रहरता । *रस, नीरस, असूपित' - सूपित' व गीला शुष्क हो ।
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मथु या कुल्माष प्रासुक स्वल्प बहु जो प्राप्त हो ॥६८॥ नही निन्दा करे उसकी मुधाजीवी मुनि कदा |
दोष-वर्जित मुधालब्ध अशन करे सम-रत सदा ||६|| युग्मम् मुधादायी सुदुर्लभ, दुर्लभ मुधाजीवी अरे ।
मुधादायी मुधाजीवी उभय सद्गति सचरे ॥१००॥
१. व्यजन रहित 1 २. व्यज-सहित ।
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दशवेकालिक
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