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दशवकालिक
अल्प, बहु, अणु, स्थूल वस्तु सचित्त और अचित्त ही। .. - . -मैं अदत्त - न , ग्रहण करता तथा करवाता नही ॥३६॥ ग्रहण करते को भला समझ नही मैं उम्र-भर । . ..... त्रिविध-त्रिविध मनोवचन तन से न करता आर्यवर ॥४०॥ कराऊँगा नही करते हुए की अनुमोदना ।
. नही करता, पूर्वकृत की कर रहा आलोचना ॥४१॥ प्रतिक्रमण निन्दा व गर्दा कर रहा अनुताप मैं।
आत्म का व्युत्सर्ग कर भगवन् ! बना निष्पाप मैं ॥४२॥ तीसरे इस महाव्रत में हूँ उपस्थित श्राप से ।
___ सब- अदत्तादान तज प्रभु मुक्त हूँ संताप से ॥४३॥ बाद इसके हैं प्रभो ! चौथां महाव्रत घोर है।
सर्व मैथुन छोड़ना यह , व्रतं अतीव कठोर है ॥४४॥r त्यागता हूँ मैं 'प्रभो ! इस मिथुन को जो हेय है।
सुर-मनुज-तियंच-योनिक भेद, इसके ज्ञेय हैं ॥४॥ नहीं खुद सेवन करूँ पर' से कराऊँगा नहीं।
मिथुनः करते हुए पर को भला समझूगा नही ।।४।। त्रित्रिध-त्रिविध मनोवचन तन से न करता उम्र-भर।
नही करवाताव अनुमोदन न करता आर्यवर ||४७॥ पूर्वकृत का प्रतिक्रमण निन्दा व गीं कर रहा।
प्रात्म का व्युत्सर्ग कर भगवन् ! सतत अघ हर रहा ॥४॥ उपस्थित चौथे महाव्रत में हुआ प्रभु आप से।
___ छोड़कर सर्व मिथुन भगवन् । मुक्त हूँ संताप से ॥४६॥ वाद इसके पाँचवाँ भगवन् ! महाव्रत इष्ट है ।
__सव परिग्रह से निवर्तन व्रत अतीव विशिष्ट है ॥५ना. मैं परिग्रह त्यागता है अहो भगवन् ! सर्व ही ।
अल्प, बहु, अणु, स्थूल वस्तु सचित्त और अचित्त ही ॥५१॥ ग्रहण करता खुद नही पर से कराऊँगा नही.।
ग्रहण करते हुए . पर को भला समझूगा नहीं ॥५२॥
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