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, · · दशवकालिक
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त्रिविध-त्रिविध मनोवचन तन से न करता उम्र-भरी " नही करवाता व अनुमोदन न करता पार्यवर || पूर्वकृत का प्रतिक्रमण निन्दा' व गैहीं कर रहा। ..
""आत्म का व्युत्सर्ग कर भगवन् ! सतत अंघ हर रहा ।।६।। साधु-साध्वी गण सुसंयत, विरत, प्रतिहत-अघ, सदा।
और प्रत्याख्यात-पापाचरण रहता सर्वदा ॥१७॥ 'दिवस में, निगि मे, अकेला और परिषद् में कदा!
- नीद में सोया हुआ या जागता रहता यदा ॥८॥ कीट, शलभ पिपीलिका. या कुंथु हों यदि हाथ पर ।
T, उदर, सिर, वस्त्र अथवा पात्र पर ।।९| रजोहर पर -और गोच्छक- तथा उंदुक- आदि पर।
दण्ड पीठ व फलक शय्या और संस्तारादि पर १००। इस तरह के अन्य उपकरणादि ,पर प्राणी , पड़े।
यत्न से प्रतिलेखना कर बार-बार परे करे ॥१०१॥ प्रमार्जन करके रखें 'एकान्त में सम्यक् उन्हे ।
___कष्ट पहुंचे, उस तरह-न रखे इकट्ठे कर उन्हे ॥१०२॥ अयतना से घूमता वह प्राणि-वध करता सही।
बन्ध होता पाप को, जिसकाकि फल है कटुक ही ॥१०३।। अयतैना से खडा होता प्राणि-वध करता वही ।
वन्य होता पाप का जिसका कि फल है कटुक ही ॥१०४।। अयतना से बैठता . वह प्राणि-वध करता सही।
बन्ध होता पाप का जिसका कि फल है कटुक हो ॥१०॥ अयतना से लेटता वह प्राणि-वध करता सही ।
बन्ध होता पाप का जिसका कि फल है कटुक ही ॥१०॥ अयतना से. जीमता वह प्राणि-वध. करता सही। .
बन्ध होता पाप का जिसका कि फल है कटुक ही ॥१०७॥