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45 / श्री दान- प्रदीप
सीमातीत है, कि हाथ में लगे हुए जरा से अन्न के नाश से भी भय को प्राप्त होते हैं । फिर भी नियम रूपी डोरे से बंधे हुए मेरे पति इस अवस्था (खिचड़ी से सड़े हुए हाथों के साथ) में भी अगर जिनालय जायंगे, तो जिनेश्वर की भक्ति से अभिभूत चैत्य का अधिष्ठायक देव कदाचित् इन पर खुश हो जाय, क्योंकि आज मैंने स्वप्न में उस अधिष्ठायक देव को अत्यन्त प्रसन्न रूप में देखा है । जिनेश्वर देव को किया हुआ एक बार का नमन भी सर्व अर्थ की सिद्धि करनेवाला होता है, भक्तिपूर्वक किया हुआ नियमित नमस्कार वांछित की सिद्धि करे, तो इसमें कैसा आश्चर्य? अतः भले ही मेरे पति इसी रूप में क्यों न जायं?"
इस प्रकार का निश्चय करके सत्य बुद्धियुक्त उस धन्या ने मानो कृपणता को ढ़कने का प्रयास किया हो, इस प्रकार उसके हाथ को वस्त्र से ढ़क दिया। फिर कहा - "अगर चैत्य में कोई आपसे कुछ भी कहे, तो आप मुझे पूछकर ही उत्तर देना ।"
उसने भी कहा - "बहुत अच्छा।”
ऐसा कहकर उसी अवस्था में चैत्य में जाकर जिनेश्वर को नमन किया और अपने अशुभ कर्मों को भी नमाया अर्थात् उनका नाश किया। नमन करके जब वह वापस लौटने लगा, तभी उसकी भक्ति से चमत्कृत होते हुए उस चैत्य की रक्षा करनेवाले देव ने प्रकट होकर कहा—“मैं इस चैत्य का अधिष्ठायक देव हूं। तुम्हारे नियम की दृढ़ता से मैं तुझ पर प्रसन्न हुआ हूं। तुझे जो मांगना हो, मांग लो।"
धनराज ने कहा- "मैं अपनी प्रिया से पूछकर आता हूं, तब तक तुम यहीं रहना ।" देव ने कहा—“हे वत्स! तुम जाओ। पर वापस जल्दी आना । तुम्हारे वापस लौटने तक मैं यहीं रहूंगा।”
तब धनराज प्रसन्न होता हुआ जल्दी से घर पहुँचा और अपनी प्रिया से कहा - " हे प्रिये ! आज जिनराज मुझ पर प्रसन्न हुए हैं । अतः उनके पास क्या मांगूं?”
यह सुनकर धन्या ने कहा - " हे नाथ! हमारे सर्व मनोरथ सिद्ध हो गये हैं । स्पष्ट रूप आठ सिद्धियाँ आपकी इस प्रतिज्ञा के द्वारा आपके वश में हो गयी हैं । आपने तीनों लोकों के ऐश्वर्य को प्राप्त कर लिया है और यह भी समझ लें कि मोक्ष लक्ष्मी भी हमारे हाथ में आ गयी है। अब आप शीघ्र ही जाकर उनसे यह वरदान मांगें कि हे प्रभु! मेरे पाप रूपी अन्धकार को दूर करें, जिससे मैं निरन्तर विवेक से युक्त बनूं, क्योंकि एकमात्र विवेक ही समस्त गुणों का नायक है और इस भव व परभव में लौकिक सम्पदा के संकेत का स्थान रूप है।"
यह सुनकर धनराज वापस चैत्य में लौटा और देव से वैसा ही वर मांगा। जिसका