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123/श्री दान-प्रदीप
को विपत्ति कहां? प्रातःकाल नगर आरक्षकों ने यह बात राजा को बतायी। तब 'क्रोधारुण होते हुए मानभंग राजा ने उसके मान को भंग करनेवाले वचन कहे-“हे बेवकूफ! तूं वास्तव में नपुंसक ही है, कि सैकड़ों योद्धाओं के परिवार से युक्त होने के बावजूद भी एक शत्रु को मार तक नहीं पाया।"
कुछ दिनों के पश्चात् मदोन्मत्त होकर राजा का पट्ट हस्ती अत्यन्त दृढ़ बंधनवाले स्तम्भ को उखाड़कर स्वेच्छापूर्वक नगरी में भ्रमण करने लगा और उत्पात मचाने लगा। वह महावायु की तरह कहीं वृक्षों को उखाड़कर फेंक देता था, तो कहीं शत्रु राजा की तरह नगरी के महलों को तोड़ डालता था। जैसे आरक्षक लोगों को त्रस्त करते हैं, वैसे ही वह पुर के लोगों को त्रस्त करने लगा। काल के बिना ही कल्पान्त काल को मानो जन्म दे रहा हो-ऐसा प्रतीत करवाता था।
उस समय राजपुत्री कनकवती कामदेव की पूजा करके उद्यान से वापस लौट रही थी। उस पर उस बिगडैल हाथी की दृष्टि पड़ी। तुरन्त ही वह हाथी क्रोध से धमधमायमान होता हुआ यमराज की तरह उसकी ओर दौड़ा। उस समय उसके साथ का दास-दासी-परिवार उच्च स्वर पुकार करने लगा-"रणसंग्राम में धीर हे वीरों! दौड़ो-दौड़ो। हमारे स्वामी की पुत्री को यह हाथी नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है। अरे! इस नगरी में कोई शूरवीरों का शिरोमणि है या नहीं, जो कि इस राजपुत्री का रक्षण कर सके? क्या यह वसुन्धरा वीर-रत्नों से खाली हो गयी है?"
इस प्रकार के उनके विलाप को सुनकर वीरसेन का पुत्र महापराक्रमी अभयसिंह कुमार तुरन्त वहां आ पहुँचा और उसने हाथी को ललकारते हुए कहा-“हे हाथी! तूं नाम से ही मातंग है-ऐसा नहीं है, बल्कि कर्म के द्वारा भी तूं मातंग ही है।"
इस प्रकार कहकर महावीर्य से युक्त कुमार ने राजपुत्री को मारने में तत्पर हुए उस दुर्वार हाथी पर वज़ से भी ज्यादा बलवाली मुष्टि के द्वारा प्रहार किया। उस समय वह हाथी राजपुत्री को छोड़कर कुमार के पीछे क्रोध से दौड़ा। निर्भय अभयसिंह ने उस हाथी को मण्डलाकार चक्कर लगवा-लगवाकर चिरकाल तक घुमाया। इससे वह इतना अधिक क्लान्त हो गया कि क्षणभर के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ बनकर खड़ा रह गया। उस समय उसके शरीर पर पसीने का जल प्रवाहित हो रहा था, जिससे वह वर्षाऋतु के पर्वत की शोभा को प्राप्त हो रहा था। उसके बाद जिसका पराक्रम वास्तव में स्तुत्य है-ऐसा वह कुमार शीघ्रता से कूदकर हाथी के स्कन्धों पर चढ़ गया। इस तरह वह पुरजनों के मन में प्रेम का
1. क्रोध में लाल।
2. चण्डाल।