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224 / श्री दान- प्रदीप
अनुक्रम से कामदेव के क्रीड़ा करने के स्थान रूपी उद्यान के समान युवावस्था को प्राप्त वे दोनों इस प्रकार शोभित होते थे, मानो 'अश्विनीकुमार पृथ्वी पर उतरे हों । युवावस्था के द्वारा दुगुनी सन्दरता को प्राप्त उन दोनों पुत्रों का उनके पिता ने अगणित उत्सवों के साथ उत्तम कुल की दो कन्याओं के साथ विवाह किया। फिर पुण्य के पात्र उन दोनों कुमारों पर घर का भार आरोपित करके उनके माता-पिता सम्यग् प्रकार से धर्म की आराधना करके स्वर्ग में चले गये ।
उसके बाद विकस्वर पुण्ययुक्त भद्र ने माता-पिता की उत्तर क्रिया की और उसके बाद उनके बंधुवर्ग ने भद्र को उसके पिता के स्थान पर स्थापित किया । धर्म में जागृत बुद्धि युक्त, चन्द्र के समान उज्ज्वल यशयुक्त और सर्वोचित कार्य करने में विचक्षण उस भद्र ने पिता का कार्यभार संभाल लिया। अकृत्रिम स्नेहयुक्त वह अपने छोटे भाई को सभी कार्यों में बहुमान प्रदान करता था । ऐसा करने से ही भाइयों की प्रीति परस्पर वृद्धि को प्राप्त होती है। छोटा भाई भी अपने बड़े भाई पर निर्मल भक्ति रखता था । जैसी भक्ति पिता के प्रति होती है, वैसी ही भक्ति बड़े भाई के प्रति भी रखनी ही चाहिए । इस प्रकार चित्त और वित्त में किसी भी प्रकार का भेद रखे बिना दोनों भाइयों का कितना ही समय सुखमय व्यतीत हुआ। उसके बाद उन दोनों की स्त्रियाँ परस्पर ईर्ष्या करने लगीं, क्योंकि स्त्रियों में स्वाभाविक रूप से ईर्ष्या, क्रोधादि सुलभ होते हैं। बिना किसी कारण के वे परस्पर झगड़ने लगतीं। उनके पतियों ने उन्हें बहुत समझाया, पर फिर भी उनके कलह का निवारण नहीं हुआ, क्योंकि फैलते हुए नदी के पूर को कौन रोक सकता है? स्त्रियों के क्लेश से उन दोनों भाइयों की परस्पर प्रीति में भी कमी आने लगी। क्या खटाई के संबंध से दूध विकृत नहीं बनता? क्रमश स्त्रियों का कलह उनके पतियों
संक्रमित होने लगा । समीप रही हुई अग्नि पासवाले घर में भी पहुँच ही जाती है। 'स्त्रियाँ अनर्थ का मूल हैं - यह कहावत क्या गलत है? क्योंकि स्त्रियों के वचन - प्रयोग से कुलवान पुरुषों के मध्य भी कलह हो जाता है। जो स्त्री उगती हुई कलह रूपी लता को प्रफुल्लित करने में मेघ की घटा के समान है, जो दयारहित होकर माता-पिता के प्रेम रूपी गले में हाथ देकर उसे निकाल देती है और जो बंधुओं की प्रीति रूपी लता के समूह को भेदने में खड़ग की धारा के समान है, उस समग्र दोषों का सेवन करनेवाली स्त्री का वामा नाम सार्थक ही
है ।
फिर दोनों भाइयों ने स्वयं ही विचार करके अपनी मिल्कियत का अन्दाज लगाकर एक-एक लाख धन लेकर अलग हो गये। छोटे भाई से जुदा हुए भद्र की लक्ष्मी सूर्य से अलग
1. साथ जन्मे हुए देवों के दो वैद्य, जिनका नाम अश्विनीकुमार था, अत्यन्त सुन्दर थे ।