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334/श्री दान-प्रदीप
वृद्धजनों को साक्षी बनाया। फिर उन साक्षी लोगों की आज्ञा लेकर ध्वजभुजंग ने किसी व्यक्ति के साथ तत्काल उस देवदत्ता को आकर्षित करनेवाला सिद्धमन्त्र ही हो-इस प्रकार संदेश कहलवाया-"यहां उज्जयिनी नगरी से ध्वजभुजंग नामक जुआरी तेरी गौरवता देखने के लिए आया है। अतः उसकी सेवा कर।" ।
ये वचन सुनते ही अकस्मात् आये हुए अपने पति को जानकर वह गणिका आश्चर्य, उत्सुकता और हर्ष आदि भावनाओं की मिश्रता से व्याप्त हो गयी। तुरन्त ही पति के दर्शनों की उत्सुकता से व्याप्त उसने सर्वांग में दैदीप्यमान अलंकार धारण करके और दिव्य वस्त्र पहनकर अपनी सखियों के साथ चली। शीघ्र चलते हुए पैरों के आघात द्वारा प्रतिज्ञा करनेवालों के चित्त को कम्पित करते हुए मनोहर झांझर के शब्दों द्वारा मानो उस कुमार के गुण गाती हुई और चारों तरफ फैलते हुए स्वर्ण व रत्नों के आभरणों की कान्ति के समूह द्वारा मानो उसकी कीर्ति का विस्तार कर रही हो, इस प्रकार से वहां आयी। वहां अनेक पुरुषों ने अलंकारादि धारण कर रखे थे, पर उसकी दृष्टि जीर्ण वस्त्रों को धारण किये हुए कुमार पर ही गिरी, क्योंकि आदर का कारण प्रेम ही होता है। कामदेव के समान मनोहर आकृतियुक्त कुमार को देखकर उस विकस्वर नेत्रोंवाली ने विनयपूर्वक मस्तक नमाकर विज्ञप्ति की-"हे स्वामी! मेरे पूर्व का अभंगुर भाग्य जागृत हुआ है, जिससे कि आज आपने स्वयं यहां आकर मुझे दर्शन देकर मुझ पर अनुग्रह किया है। हे देव! मुझ पर प्रसन्न होकर अपने चरण- कमलों की रज के द्वारा शीघ्र ही मेरे घर को पवित्र बनायें।"
यह सुनकर कुमार ने उससे कहा-“हे सुन्दरी! अभी तो यहीं भोजन तैयार करो। यहां भोजन करने के बाद ही घर चलूंगा।" ___ 'ठीक है-ऐसा कहकर उसके वचन अंगीकार करके तुरन्त ही उसने दासियों के द्वारा सर्व भोजन-सामग्री तैयार करवायी और स्वयं भक्तिपूर्वक उसकी सेवा करने लगी। उसके समस्त दुर्भाग्य रूपी कलंक को मानो धो रही हो इस प्रकार से स्नेहपूर्वक सुगंधित जल से उसे स्नान करवाया। हृदय रूपी क्यारी में प्रफुल्लित हुई प्रीति रूपी लता के पत्रों के समान चित्त के अनुकूल वस्त्र उसे पहनाये। हृदय के बाहर प्रसरता मानो स्नेहरस हो-इस प्रकार चंदन के रस के द्वारा उसने सर्वांग में लेप किया। उसके औदार्यादि गुणों को मानो प्रकट कर रही हो-इस प्रकार मणि और सुवर्ण के आभूषणों द्वारा उसे भूषित किया। लावण्य सहित नवीन और सर्वांग से मनोहर अपनी काया के समान ही मीठा भोजन उसे करवाया। फिर भोजनोपरान्त हाथ और मुख धुलाकर कपूर के चूर्ण द्वारा मनोहर व प्रेम रूपी वृक्ष की मूल के समान ताम्बूल का बीड़ा दिया। इस प्रकार उसने स्वयं अपने द्वारा सेवा करके उसकी ऐसी आवभगत की कि कुमार को सार्थेश के वचनों की सत्यता प्रतीत होने लगी। कुमार की सेवा