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333/श्री दान-प्रदीप
कर-करके उन्हें योग्यताप्रमाण भोजन करने के लिए भोजनशाला में बिठाया। उस समय धूल से सनी हुई मणि की तरह और जीर्ण तथा मलिन वस्त्रवाले कुमार को हीन जानकर अधिकारियों ने उसे हीन पंक्ति में बिठाया। उन्हें परोसने के लिए एक दासी आयी। उसका नाक चपटा था, होंठ लम्बे थे, नेत्र पिंजरे के समान थे, पेट मोटा था, गाल धंसे हुए थे, कान सूपड़े के समान थे, केश पीले थे, रूप में वह कद्रूप थी, नाभि-पर्यन्त उसके स्तन लटक रहे थे, फटे हुए मलिन वस्त्र उसने धारण किये हुए थे। वह श्लेष्म और पसीने के हाथों को अपने वस्त्र से पोंछ रही थी। अतः साक्षात् प्राणियों की अलक्ष्मी ही हो-ऐसी वह दासी अनुक्रम से परोसते-परोसते कुमार के पास आयी। मूर्तिमान कुत्सा को देखकर कुमार के मन में दुगुंछा उत्पन्न हुई। अतः उसने 'हे अमेध्य! यहां से दूर हो जा'-इस प्रकार कहकर उसका निषेध किया। उसको निषेध करते हुए देखकर अधिकारियों ने कहा-"तुम इसको क्यों रोक रहे हो?" ___ तब उस कुमार ने कहा-"यह जुगुप्सनीय है। मल से व्याप्त और कद्रूप से युक्त यह परोसनेवाली मुझे पसन्द नहीं है। पिशाचिनी की तरह इसे देखकर मेरा हृदय कम्पित होता है। मेरी अत्यन्त तीव्र भूख भी इसे देखकर मूल सहित नष्ट हो गयी है। तुमलोग चाहे जैसा रूखा-सूखा भोजन दो, पर परोसनेवाली तो कम से कम सुरूपा हो।"
यह सुनकर वह अधिकारी हंसकर बोला-“ऐसे सौभाग्य से शोभित तुझे परोसने के लिए देवदत्ता गणिका ही आयगी।"
इस तरह विविध प्रकार की उक्तियों के द्वारा परस्पर मुख देखते व हास्य करने में तत्पर उन अधिकारियों को कुमार ने आक्षेपपूर्वक कहा-“हे अधिकारियों! तुम क्यों हंसते हो? तुम्हारे द्वारा अत्यधिक धन देने और अनेकों खुशामद करने के बावजूद भी वह तुम्हारी तरफ देखती भी नहीं है। वही देवदत्ता गणिका अगर यहां आय और भक्तिपूर्वक भोजन करवाय, तो तुम क्या हारोगे?"
इस प्रकार उसके वचन रूपी मदिरा का पान करके उन्मत्त हुए पुरुष के प्रलाप जैसा मानकर उन अभिमानी और उद्धत राजपुरुषों ने उससे कहा-"अगर ऐसा हो, तो हम हमारा सर्वस्व हार जायंगे और अगर ऐसा न हुआ, तो तूं क्या हारेगा?"
उनके इस प्रकार आक्षेपपूर्वक कहने पर कुमार ने कहा-"मेरे पास तो सिर्फ मेरा मस्तक ही है। यही मेरा द्रव्य है।"
__ इस प्रकार उसने धैर्ययुक्त वचन कहे। उस समय अन्य लोगों ने कहा-"अरे! निर्भागी! अपने जीवन को ही बाधित करनेवाली प्रतिज्ञा तूं मत कर।"
पर उसने अनसुना करके अपने मस्तक की शर्त रखी। उस विषय में कितने ही मध्यस्थ