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338/श्री दान-प्रदीप
प्रयत्नपूर्वक देने की तरह निरन्तर माता की सेवा करते हैं, वे ही पुत्र पवित्र हैं। जो पुरुष प्रतिदिन प्रातःकाल होने पर अपनी माता के चरणों में नमस्कार न करता हो, माता की युवावस्था का नाश करनेवाले वैसे पुत्र का जन्म ही न हो। जिस दिन और जिस क्षण माता के चरण-कमल की रज मेरे कपाल पर तिलक रूप बनेगी, वही दिन मेरे लिए आनन्दकारी होगा। वही क्षण मेरे लिए उत्सव रूप होगा।"
इस प्रकार चित्त में चिन्ता से व्याप्त उसको देखकर बुद्धिमान गणिका ने प्रेम के प्रवाह का विस्तार करते हुए मधुर वाणी के द्वारा चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा-"हे देव! आज आपको कोई आधि, व्याधि या विचार तो नही बाधित कर रहा? क्योंकि पूर्व में कभी भी आपको इस तरह चिन्ताग्रस्त नहीं देखा। आपका दुःख दर्पण की तरह मुझमें यानि मेरे हृदय रूपी दर्पण में प्रतिबिम्बित हो रहा है। अतः हे नाथ! अगर कोई गोपनीय बात न हो, तो मुझे शीघ्र बतायें।"
यह सुनकर ध्वजभुजंग ने कहा-“हे प्रिये! यह तुम क्या बोल रही हो? तुमसे छिपाने योग्य क्या कोई बात हो सकती है भला? कोई भी आधि-व्याधि मुझे बाधित नहीं कर रही है। बल्कि माता के विरह से व्याप्त व्यथा ही मुझे उद्वेलित कर रही है।"
यह सुनकर गणिका ने विचार किया-"जो पति के चित्त का अनुसरण करती है, वही पतिव्रता कहलाती है।"
ऐसा विचार करके मानो पति के वचनों की ही प्रतिध्वनि हो-इस प्रकार से बोली-“मेरा चित्त भी आपकी माताजी से मिलने के लिए उत्सुक हो रहा है, क्योंकि सास की आज्ञा ही सतियों के सिर का मुकुट होती है। मुझे आपका नगर देखने की भी अत्यन्त इच्छा है, क्योंकि पति की मातृभूमि किस पत्नी के लिए तीर्थरूप नहीं होती? अतः आप प्रसन्न होकर शीघ्र ही मुझे साथ लेकर अपने नगर की तरफ प्रस्थान कीजिए, क्योंकि चन्द्र चन्द्रिका का त्याग करके कहीं जाता है क्या?"
इस प्रकार गणिका की वाणी रूपी द्राक्षा का स्वाद लेकर वह हर्षित हुआ और बोला-"हे प्रिया! तुमने अपनी प्रीति के अनुकूल ही वचन कहे हैं। पर मुझे घर का त्याग किये बहुत समय हो गया है। अतः घर के बारे में मुझे कुछ भी पता नहीं है। अब वहां रहना योग्य भी है या नहीं? यह भी मुझे ज्ञात नहीं है। यहां तो राजा की कृपा फले हुए कल्पवृक्ष की तरह है। अतः हे प्रिया! पहले तो मैं अकेला ही वहां जाऊँगा। अगर वहां रहने की व्यवस्था होगी, तो मैं तुम्हें वहां बुलवा लूंगा। अन्यथा मैं मेरी माता को लेकर शीघ्र ही तुम्हारे पास लौट आऊँगा। हे पवित्र आचार को धारण करनेवाली प्रिया! तब तक तुम यहीं रहना।"
इस प्रकार कहकर हर्षपूर्वक उसके द्वारा किये गये मंगलपूर्वक अल्प परिवार के साथ वह