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336/श्री दान-प्रदीप
कुमार को विशेष रूप से देख रहे थे। कौतुक देखने के लिए उतावले हुए पुरजन उस कुमार के चारों तरफ घूम रहे थे। उसके आगे पग-पग पर संगीतपूर्वक नृत्य हो रहा था। मानो बावड़ी के अधिकारियों का मूर्तिमान उद्वेग हो-इस प्रकार अनुपम कान्तिवाला कुमार इस प्रकार के विशाल उत्सवपूर्वक राजमहल के द्वार के पास आया। वहां वह हाथी के हौदे पर से नीचे उतरा और देवदत्ता द्वारा दिये गये उपहारों को राजा को समर्पित करके विनयपूर्वक राजा को प्रणाम किया। अश्विनीकुमार के समान उसके रूप को देखकर राजा विस्मित रह गया। स्वागत के वचनपूर्वक उसका सत्कार किया।
फिर देवदत्ता ने राजा से कहा-“हे देव! जिसने मुझे लीला-मात्र में पाँचसौ हाथी भेजे, वह उत्तम पुरुष यही है। अमूल्य दान के व्यसन से शोभित इस सत्पुरुष ने अपने द्वारा कृत उपकार रूपी मूल्य के द्वारा मानो मुझे खरीद लिया है-मैं इस प्रकार की हो गयी हूं। अतः मैंने इन्हें जिन्दगी भर के लिए प्राणनाथ के रूप में स्वीकार कर लिया है। इस विषय में रूपयों के मध्य लक्ष्मी के सिक्के की तरह आपकी अनुज्ञा प्राप्त हो।"
उसके इस प्रकार विज्ञप्ति करने पर राजा ने विस्मय के साथ कहा-"कौन बुद्धिमान योग्य के साथ संबंध को मान्य नहीं करेगा? यह कुमार गुणीजनों में अग्रसर है और तूं अद्भुत कलाओं का स्थान है। अतः रति और कामदेव के समान तुम दोनों का सम्बन्ध होना ही चाहिए।"
उसके बाद राजा की प्रसन्नता से कुमार को बल मिला। अतः जैसे क्षीरसागर अपनी तरंगों को उछालता है, उसी तरह उसने अपनी वाणी को उछालते हुए कहा-“हे देव! मैंने बावड़ी के अधिकारियों का समग्र धन जीता है। अतः उनके पास से मेरा लेन मुझे दिलवायें। इस बात में सभ्यजन मेरी साक्षी के रूप में हैं।"
तब राजा ने उन सभ्यजनों की साक्षी में ही बावड़ी के अधिकारियों से कहा-"शर्त में हारा हुआ धन तुम ध्वजभुजंग को क्यों नहीं देते?"
यह सुनकर दीन मुखवाले उन अधिकारियों ने राजा से कहा-“हे पृथ्वीपति! हमने मूर्खता में आकर घर का सर्वस्व शर्त में लगा दिया था। अतः अब आपका हुक्म ही हमारे लिए प्रमाण रूप है, पर हमारी आजीविका का निर्वाह हो-इतनी तो हम पर कृपा कीजिए।"
तब अत्यन्त दयाभाव से युक्त होकर ध्वजभुजंग ने राजा से कहा-"ठीक है, मैं दया के कारण आधा धन छोड़ता हूं, पर आधा धन तो दिलवायें।"
यह सुनकर राजा प्रसन्न हुआ। उसने अपने मंत्री के द्वारा अधिकारियों के समस्त धन का आधा भाग करवाकर मानो उसका भाई ही हो इस प्रकार वह आधा धन ध्वजभुजंग को