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286/ श्री दान- प्रदीप
के समुद्र से बाहर निकालने में अपनी शक्ति का उपयोग करना महापुरुषों के लिए उचित कार्य है, तो फिर एक अबला को विपत्ति से मुक्त कराने का तो कहना ही क्या ?"
इस प्रकार विचार करके उसने कहा - "हे कमलाक्षि ! तूं भयभीत मत बन । मैं तेरा रक्षण करूंगा। अब मैं आ गया हूं तो तुम्हें यमराज से भी भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है । लीलामात्र में इस मदोन्मत्त हाथी का मद मैं उतारता हूं।"
इस प्रकार कुमार ने पहले वचनामृत के द्वारा उसे जीवित व स्वस्थ बनाया। फिर हाथी को नियंत्रित करने में विचक्षण कुमार ने उस हाथी को कुछ समय के लिए क्रीड़ा करवायी । फिर उसे त्रस्त और परास्त करते हुए अपना सिंह नाम सार्थक किया। उसका उस प्रकार का पराक्रम देखकर कन्या विस्मित हुई । आनन्दित होते हुए अपने प्राणरक्षक उस कुमार को मन ही मन में स्वामी के रूप में अंगीकार कर लिया। फिर मूर्तिमान जयलक्ष्मी के समान उस कन्या को साथ लेकर बन्दीजनों के द्वारा गुणग्राम किये जाते हुए वह कुमार राजा के पास पहुँचा और नमस्कार किया। सारा वृत्तान्त जानकर प्रसन्न होते हुए राजा ने उसकी अत्यन्त प्रशंसा की । कन्या के अद्भुत रूप को देखकर राजा हृदय में अत्यन्त विस्मित भी हुआ । इसी अवसर पर पुत्री का वृत्तान्त सुनकर उसका पिता धनमित्र श्रेष्ठी मन में आनन्दित हुआ और राजा के पास आकर प्रणाम किया। पुत्री को कुमार पर अनुरक्त देखकर श्रेष्ठी ने उस कन्या को कुमार को सौंप दिया। राजा ने शुभ दिन देखकर उस कन्या का कुमार के साथ पाणिग्रहण करवा दिया । उसके बाद देवांगनाओं को भी तृण के समान तुच्छ बनानेवाली उस धनवती प्रिया के साथ रति-कामदेव के समान वह कुमार शोभित होने लगा ।
उस अद्भुत घटना के कारण उसकी कीर्ति मेघ द्वारा नदी की तरह चारों तरफ फैल गयी । शक्कर जैसे दूध को विशिष्ट बनाती है, वैसे ही उसका लावण्य प्रसरती हुई कीर्ति के द्वारा अत्यधिक विशिष्टता को प्राप्त हुआ। उस कुमार को देखने के लिए गवाक्षों में से निकले हुए स्त्रियों के मुख- समूह से आकाश इस प्रकार शोभित होता था, मानो वह लाखों चन्द्रों से युक्त हो। जब कुमार नगर में परिभ्रमण करता, तो स्त्रियाँ अपने कार्यों को अधूरा छोड़कर उसे देखने के लिए उत्सुक बनती हुई दौड़-दौड़कर आ जाया करती थीं। कुमार के दर्शन रूपी उत्सव से हर्ष को प्राप्त स्त्रियाँ गीत-संगीत आदि उत्सवों को तृण के समान मानती थीं। विकसित नेत्रों से युक्त होकर स्त्रियाँ विशाल दृष्टि से उस कुमार को देखती थीं, उसकी स्तुति करती थीं और उसके गुणों को गाती थीं । इतना सब कुछ होने के बाद भी मुनीश्वर के समान कुमार उन स्त्रियों में जरा भी अनुरक्त नहीं होता था । पर उसे देखने की इच्छा से दौड़ती हुई स्त्रियों के घर के अधूरे काम बाधित होते थे, जिससे उनके घर के पुरुष अत्यन्त खेदित होते थे। उन सभी ने जाकर एकान्त में राजा से विज्ञप्ति की, क्योंकि प्रजा न्यायमार्ग के पथिक