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319 / श्री दान- प्रदीप
नहीं हुआ, क्योंकि क्षोभ को प्राप्त होने पर भी क्या समुद्र अपनी मर्यादा छोड़ देता है? ऐसे दुष्ट दोहद आने के बावजूद भी शुद्ध मन से युक्त होकर वह जबरन दया, देवपूजा और दीन-हीन जनों को दान देकर अपने दुष्ट भाग्य का नाश करने के लिए प्रवर्तित होने लगी । अतः शुभ आशयवाली होने से उसे शुभ दोहद उत्पन्न होने लगे । अभ्यास के अनुसार ही प्राणियों का परिणाम प्रवर्तित होता है। उसके इच्छित शुभ दोहद पूर्ण होने मुश्किल थे, फिर भी उसके पति ने उसके सभी दोहद पूर्ण किये । प्रसन्न हुआ पति स्त्रियों के लिए जंगम कल्पवृक्ष के समान होता है। गर्भ अदृश्य था, पर फिर भी वह माता-पिता की प्रीति को बढ़ाता गया । चन्द्र बादलों में रहने के बावजूद भी क्या समुद्र को उछलती तरंगों से युक्त नहीं बनाता?
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अनुक्रम से समय पूर्ण होने पर सम्पूर्ण शुभ लक्षणों से युक्त सूतिकागृह को उद्योतित करनेवाले पुत्र को उसी तरह जन्म दिया, जैसे रत्नों की खान रत्नों को उत्पन्न करती है । उस समय उसके पिता ने निर्मल और विशाल जन्मोत्सव किया। बारहवें दिवस माता-पिता ने उसका नाम राजपाल रखा । वह शुक्ल पक्ष की द्वितीया के चन्द्र की तरह अनुक्रम से वृद्धि को प्राप्त होने लगा । अमृत की वृष्टि की तरह वह अपने पितादि व बन्धुजनों को आनन्दित करने लगा। आठ वर्ष की वय प्राप्त होने पर पिता ने उसे उपाध्यायों के पास पढ़ने के लिए भेजा। वहां वह सर्व कलाओं में निष्णात हो गया । स्वर्ण को घड़कर अगर अलंकार के रूप में बनाया जाय, तो ही वह लोगों के मण्डन रूप बनता है । फिर वह कुमार सभी स्त्रीजनों के नेत्रों के जीवन रूपी युवावस्था को प्राप्त हुआ । उसकी रूपलक्ष्मी कामदेव के गर्व का नाश करनेवाली बनी। उसका वक्षःस्थल उदारता के साथ विशालता को प्राप्त हुआ । उसके नेत्र पिता की वाणी के साथ कर्ण के प्रान्त भाग में विश्रान्ति को प्राप्त हुए। उसका उदर गर्व के साथ कृशता को प्राप्त हुआ । उसके दोनों हाथ यश के साथ दीर्घता को प्राप्त हुए। उसकी नासिका माहात्म्य के साथ उन्नतता को प्राप्त हुई। उसके हाथ- थ-पैर वाणी के साथ कोमलता को प्राप्त हुए। उसके दाढ़ी-मूछ तेज के साथ उत्पत्ति को प्राप्त हुए। उसका कपाल बुद्धि के साथ विस्तार को प्राप्त हुआ । उसके दोनों होंठ लोगों के साथ राग को प्राप्त हुए। उसके पुष्ट हुए दोनों स्कन्ध विनय के साथ शोभा को प्राप्त हुए । इस प्रकार परस्पर मानो स्पर्धा करती हों - ऐसी उसकी उसकी मनोहर रूपलक्ष्मी और गुणलक्ष्मी ने उसका आनन्दपूर्वक आलिंगन किया था । कमल को भ्रमरों की तरह उसके सौभाग्य से लुब्ध हुए कौन - कौनसे अकृत्रिम (सच्चे) मित्र उसके पास नहीं मंडराने लगे ? अर्थात् उसके पास हितैषी मित्रों का सदा जमघट लगा रहता। वह राजपाल मित्रों के साथ ग्राम के उद्यानों में क्रीड़ा करता और इच्छानुसार अनेक कौतुक देखते हुए समय व्यतीत करता था ।
कितना ही समय बीत जाने के बाद जिस प्रकार उपाधि के कारण दर्पण में श्यामता आ