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306/श्री दान-प्रदीप
तब उस कुब्ज ने 'णमो जिनेभ्यः' जिनेश्वरों को नमस्कार हो-ऐसा उच्चारण करके बोलना शुरु किया
"हे राजा! सुनो। सिंहलद्वीप नामक एक द्वीप है। वहां सिंहलेश्वर नामक राजा साम्राज्य के सुख को भोगता है। उस राजा के सिंह समान पराक्रमवाला सिंहलसिंह नामक पुत्र है। एक बार उस कुमार ने धनवती नामक कन्या का मदोन्मत्त हाथी से रक्षण किया और बाद में उस कन्या से विवाह भी किया। फिर कुमार के सौभाग्य को लेकर पुरजनों ने राजा को उपालम्भ दिया। यह सुनकर खेदित होते हुए कुमार अपनी प्रिया को लेकर घर से निकल गया।"
यह सुनकर धनवती अपने पति की कथा जानकर अत्यन्त हर्षित हुई। उसने मुख ऊँचा करके उस कुब्ज को अपने पति की तरह देखने लगी। कुब्ज ने आगे कहा-"उसके बाद कुमार वाहन में बैठकर अपनी प्रिया के साथ समुद्र में अन्य द्वीप की ओर चला। मार्ग में दैवयोग से वाहन टूट गया। अतः कुमार समुद्र में गिर गया। अब इसके बाद का वृत्तान्त मैं कल सवेरे बताऊँगा।"
यह कहकर कुब्ज अपनी पुस्तक बांधने लगा। उस समय धनवती तत्काल उठकर उसके पास गयी, उसके पैरों में गिरकर विनति करते हुए कहा-“पोत टूटने पर कुमार समुद्र में गिरे। उसके बाद वे जीवित बचे या नहीं? कृपा करके मुझे जल्दी बताओ।"
तब कुब्ज ने राजा से कहा-"इस एक स्त्री का मौन मैंने तुड़वा दिया है। अब अन्य दो स्त्रियों को मैं कल बुलवाऊँगा।"
यह सुनकर राजा ने कहा-"इन दो स्त्रियों को भी तूं अभी ही बुलवा, क्योंकि इस विषय में सभी लोग मन में उतावले हो रहे हैं।"
यह सुनकर कुब्ज ने कहा-"तो ठीक है। आगे सुनिए
उसके बाद कुमार के हाथ एक पाटिया आ जाने से समुद्र का उल्लंघन करके रत्नपुर नामक नगर में पहुँचा। वहां रत्नप्रभ राजा की पुत्री रत्नवती को सर्प ने डस लिया था। उस कुमार ने कुमारी को जीवित किया, अतः राजा ने उस कन्या का विवाह कुमार के साथ कर दिया।"
यह सुनकर रत्नवती अत्यन्त हर्षित होते हुए मन में विचार करने लगी कि यह मेरे पति के वृत्तान्त को भी बिल्कुल सत्य रूप में बता रहा है। ऐसा विचार करके रत्नवती ने भी तत्काल मुख ऊँचा करके हर्ष से विकस्वर नेत्रों के द्वारा चन्द्र के सन्मुख चकोरी देखती है, उसी प्रकार कुब्ज के सन्मुख देखने लगी। धनवती भी अपने पति को जीवित जानकर अत्यन्त