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270/ श्री दान-प्रदीप
जिससे वह शीघ्र फलीभूत हो सके और अखूट लक्ष्मी की प्राप्ति हो।"
इस प्रकार विचार करके कार्य के ज्ञाता वे दोनों उपवास में तत्पर रहकर माहात्म्य के द्वारा प्रसिद्ध कामदेवी की आराधना करने लगे। 21 उपवास हो जाने पर वह देवी प्रत्यक्ष प्रकट हुई और कहा-"मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हुई हूं। अतः इच्छानुसार वर मांगो।"
यह सुनकर शुद्ध बुद्धि के निधि धनदत्त ने कहा-“हे देवी! हमें विवेक के द्वारा शोभित लक्ष्मी प्रदान करो।"
तब देवी ने कहा-“इन दोनों में से कोई एक वस्तु मांगो। दो वरदान एक साथ मत मांगो, क्योंकि देव-देवी भी पुरुषों को उनके कर्म के अनुसार ही दे सकते हैं।"
यह सुनकर सिद्धदत्त ने विचार किया-"विद्वत्ता आदि सभी गुण लोक में लक्ष्मी से ही प्राप्त होते हैं।"
अतः मूढ़ बुद्धि से युक्त होकर उसने लक्ष्मी मांगी। उधर धनदत्त ने अपनी सद्बुद्धि से विचार किया कि विवेक ही तीन लोक में समग्र लक्ष्मी का कारण है। अतः उसने विवेक ही मांगा। उन दोनों को अपनी-अपनी इच्छानुसार वरदान देकर देवी अपने स्थान पर लौट गयी। वे दोनों भी अपने-अपने घर चले गये।
एक बार सिद्धदत्त के घर मध्याह्न के समय आश्चर्य उत्पन्न करनेवाले विविध प्रकार के मंत्रों की सिद्धि से युक्त कोई श्रेष्ठ योगी आया। उसे देखकर लुब्ध बुद्धि से युक्त सिद्धदत्त ने सोचा-"यह किसी सिद्धि का स्थान है-ऐसा प्रतीत होता है।"
ऐसा मन में सोचकर उसे इच्छा-प्रमाण भरपेट भोजन करवाया। उसकी भक्ति से संतुष्ट होकर योगी ने उसे मंत्रसिद्ध काकड़ी के बीज दिये और उसका फल बताया-"हे वत्स! इन बीजों को विधि के अनुसार बोने से एक मुहूर्त में ही नव पल्लवों से युक्त फलसहित लता उत्पन्न होगी। अमृत के समान अत्यधिक रस से व्याप्त इसके फल का प्रभाव यह है कि इसका सेवन करनेवालों की क्षुधा और तृषा दोनों ही शान्त हो जाती है। इस का फल खाने से वायु के चौरासी दोष, नेत्र के सड़सठ दोष और अठारह प्रकार के कोढ़ रोग तत्काल नाश को प्राप्त हो जाते हैं। सन्निपातादि सभी दुःसाध्य बीमारियाँ भी मेघ की वृष्टि के द्वारा दावानल की तरह इस फल के द्वारा शान्त हो जाती हैं। इसके फल का सेवन करने से स्थावर (अजीर्णादि) और जंगम (सर्पादि)-दोनों प्रकार के विष का नाश हो जाता है। विशेष क्या कहूँ? इसका फल समस्त रोगों का हरण करनेवाला उत्कृष्ट रसायन रूप है। अतः इन बीजों को तुम यत्नपूर्वक सम्भालकर रखना।"
ऐसा कहकर वह योगीन्द्र अपने स्थान पर लौट गया। सिद्धदत्त ने भी शुभ दिन उन