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257/श्री दान-प्रदीप
हे राजा! आप अपने साम्राज्य को अलंकृत करें, अपनी प्रजा को प्रसन्न करें और इन सब में मैं भी कुछ यथाशक्ति आपकी भक्ति करूं।"
यह सुनकर तथा उस देव की समृद्धि देखकर उसके आगमन और उसके द्वारा की गयी भक्ति से राजा भी अंतःकरण में आनन्द को प्राप्त हुआ। फिर सैन्यसहित नगर के भीतर की और चला। उस समय देव ने राजा के मस्तक पर उसका पूरा सैन्य ढ़क जाय-ऐसा विशाल छत्र धारण किया। दोनों तरफ चामरों की श्रेणि को वीजने लगा। आगे संवर्तक वायु की विकुर्वणा करके रास्ते के कंटकों को दूर करने लगा। सुगन्धित जल का सिंचन करके चारों तरफ उठती हुई धूल को शान्त करने लगा। पंचरंगे पुष्पों के समूह से पृथ्वी को ढंक दिया। आगे-आगे सैकड़ो ध्वजों की विकुर्वणा की। "इस राजा की जो अवज्ञा करेगा, वह अपने आप ही प्रलय को प्राप्त होगा"-इस प्रकार की आकाशवाणी करते हुए आकाश में देवदुन्दुभि भी बजाने लगा। दिव्य संगीत की भी सृष्टि उस देव ने की। इस प्रकार उस देव ने राजा के पुर-प्रवेश का उत्सव किया। राजा ने जैसे ही महल में प्रवेश किया, वैसे ही उस देव ने इस प्रकार स्वर्ण की करोड़ों सोनैयों की वृष्टि की, जैसे मेघ जलधारा बरसाता है। "फिर समय आने पर मैं आपका उपकार करूंगा" इस प्रकार कहकर देव स्वर्गलोक में चला गया।
इन्द्र के समान पराक्रमी राजा ने सिंहासन पर बैठकर समस्त लोगों के साथ यथायोग्य आलाप–संलाप करके सभी को प्रसन्न किया। फिर शृंगारसुन्दरी के गुणसमूह से हर्षित राजा ने उसका अभिग्रह पूर्ण हो जाने के कारण पारणा करवाया और उसे पट्टरानी का पद प्रदान किया। इस प्रकार राजा ने चिरकाल तक विशाल राज्य का पालन किया। चन्द्र की तरह सुवृत्त पुरुष गयी हुई लक्ष्मी को भी पुनः प्राप्त कर लेते हैं।
एक बार सुधर्मा सभा में इन्द्र की तरह अपनी सभा में राजा रत्नपाल बैठा हुआ था। उस समय उद्यानपालक ने आकर विज्ञप्ति की-“हे देव! साक्षात् यमराज के समान वन का प्रचण्ड हाथी मदोन्मत्त होकर अपनी भयंकर सूंड के द्वारा उद्यान में उपद्रव मचा रहा है।"
यह सुनकर राजा का मुख क्रोध से कम्पित होने लगा। तुरन्त कुछ सैनिकों को साथ लेकर अश्व पर आरूढ़ होकर राजा उद्यान में पहुंचा। वहां पहुंचकर अश्व से नीचे उतरकर राजा ने धैर्यपूर्वक उस हाथी की तर्जना करते हुए कहा-“हे दुष्ट मदयुक्त! हमारे इस उद्यान को क्यों व्यर्थ ही उखाड़ रहे हो? अगर तुझमें थोड़ी भी शूरवीरता है, तो मेरे साथ युद्ध कर।"
इस प्रकार राजा द्वारा तिरस्कृत वह हाथी क्रोधोद्धत होकर राजा की तरफ दौड़ा। हाथी को शिक्षित करने में कुशल राजा ने थोड़ी देर तो उसे क्रीड़ा करवायी, फिर वेगपूर्वक