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264/श्री दान-प्रदीप
तब दीपक ने जवाब दिया-"अरे धूर्त! तूं रूखी रोटी खा। मैं तो दूसरे द्वीप में जाऊँगा, पर तुझे तेल नहीं दूंगा।"
तब धूर्त ने भी कहा-"भले ही अन्य द्वीप में जा, स्वर्ग में जा, पाताल में जा, जहां तेरी मर्जी हो, वहां जा। पर तूं जहां जायगा, मैं तेरे पीछे-पीछे वहां आऊँगा और तेरा तेल लूंगा।"
तब दीप ने फिर से कहा-"दिव्य शक्ति के द्वारा जाते हुए युग के अन्त में भी तूं मुझे नहीं पा सकेगा। अतः तूं वापस क्यों नहीं लौटता?"
इस प्रकार विवाद करते हुए देव के समान दीपक उस धूर्त को दूर अरण्य में ले गया और दिन के उगते ही अपने आप बुझ गया।
'बैरी को सर्प के समान दूर फेंक दिया'-ऐसा विचार करके देवी हर्ष को प्राप्त हुई। धूर्त वन में आ जाने से खेद को प्राप्त हुआ।
'देवी ने मुझे ठगकर अरण्य में भेज दिया है। इस प्रकार विचार करते हुए वह धूर्त अरण्य में घूमने लगा। तभी उसने किसी स्थान पर एक जलता हुआ अग्निकुण्ड देखा। उस कुण्ड के किनारे दो नवयौवना एवं दिव्य लावण्य से युक्त कन्याओं को तथा दीन व समग्र अंगों से हीन एक पुरुष को देखा। उन्हें देखकर उस धूर्त ने पूछा-"तुम दोनों कौन हो और यह पुरुष कौन है? यह जलता हुआ कुण्ड किसके लिए है?" __उसके द्वारा पूछे जाने पर भी उन दोनों कन्याओं ने कुछ भी जवाब नहीं दिया। अतः आश्चर्यचकित होते हुए वापस अपने नगर में लौटकर दस करोड़ द्रव्य प्रदान करनेवाले राजा को जाकर यह अद्भुत बात बतायी। सुनकर राजा भी अत्यन्त आश्चर्यचकित हुआ और उसे लेकर उस वन में गया। वहां उसके कथनानुसार सारी घटना सत्य रूप में देखकर राजा ने उन दोनों कन्याओं से स्नेहपूर्वक पूछा-"इस शून्य वन में तुम दोनों क्या कर रही हो? तुम दोनों कौन हो? यह अग्निकुण्डादि किसलिए है? तुम डरो मत। मैं रत्नपाल नामक राजा
___ उसके इन वचनों से दोनों कन्याओं को हर्ष हुआ। उनमें से ज्येष्ठ युवती ने राजा से कहा-"हमारा आश्चर्यकारक वृत्तान्त सुनिए। हम दोनों विश्वावसु नामक विद्याधर राजा की पुत्रियाँ हैं। मेरा नाम विश्वसेना है और मेरी छोटी बहन का नाम गन्धर्वसेना है। हमने युवावस्था को प्राप्त किया, पर हमारे योग्य कोई वर नहीं मिला। अतः एक बार हमारे पिता ने किसी निमित्तज्ञ से पूछा। तब उसने स्पष्ट रूप से कहा कि एक शून्य अरण्य में अग्नि देवता से अधिष्ठित एक कुण्ड बनाओ। उसमें ज्वाला के समूह से व्याप्त अग्नि सुलगाओ। वह अग्नि मंत्र, तंत्र, विद्या, सिद्धि और औषधि आदि के द्वारा नहीं बांधी जा सकेगी। उस