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251/श्री दान-प्रदीप
हुआ। उसके नगर को मानो बिना मालिक का जानकर शत्रु भी उपद्रव करने लगे। इस प्रकार राज्य से भ्रष्ट होकर तथा दुःख से अत्यन्त पीड़ित होकर वह विचार करने लगा-"हहा! मैंने दुर्बुद्धियुक्त होकर धर्म रूपी धन से युक्त सती की विराधना की, जिसके फलस्वरूप ही यह आपत्ति और विपत्ति मुझे प्राप्त हुई है। अहो! उस शीलवती की शक्ति अद्भुत ही है। उसके शील के प्रभाव से मेरा विशाल राज्य भी क्षणभर में नष्ट हो गया।"
इस प्रकार वह खेदपूर्वक विचार कर रहा था, कि किसी विद्याधर ने आकर उससे कहा-“हे देव! आज मैंने कोई अलौकिक विशाल कौतुक देखा है। वह यह है कि रत्नपुर नगर में सूर्य अस्त ही नहीं होता। किसी भी कारण से सूर्य को स्तम्भित हुए आज तीन दिन हो गये हैं। वहां के लोग इस घटना को उपद्रव मानकर भय से व्याकुल होते हुए उसकी शान्ति के लिए क्रियाएँ कर रहे हैं। यह हकीकत मैंने मेरे इन नेत्रों से देखी है। मैं वहां से सीधा आपके पास ही आया हूं| ऐसा आश्चर्य न तो कभी किसी ने देखा है और न ही सुना है।"
यह सुनकर वह विद्याधर राजा और अधिक आश्चर्यचकित होते हुए विचार करने लगा-"अहो! उस रानी के शील का प्रभाव तीन जगत से भी परे है। उसने शीलभंग होने के डर से व्याकुल होकर शील के ही प्रभाव से सूर्य को भी अपना दास बना लिया है। उस समय उस सती ने जो-जो शब्द लीलावश बोले थे, वे सभी सत्य साबित हुए हैं। उसके वचन अन्यथा नहीं हुए। मुझे भी वह अपने क्रोध से भस्मसात कर देगी। अत: मुझे अभी ही उसके पास जाना चाहिए और अनुनय-विनय के द्वारा उसे प्रसन्न करना चाहिए।"
इस प्रकार विचार करके राजा तुरन्त ही वहां गया और सती को नमस्कार करके उसके स्वजनों के सामने ही उससे माफी माँगने लगा-“हे सती! मैंने दुष्ट बनकर रागान्ध होकर तुम्हारी विराधना की, जिससे मैं अनेक आपत्तियों को प्राप्त हो चुका हूं। मेरे अपराध को तुम क्षमा करो। हे माता! मैंने तुम्हारे शील के प्रभाव को प्रत्यक्ष देखा है। यह सूर्य भी तुम्हारे ही शील के प्रभाव से स्तम्भित होकर अस्त नहीं हो रहा है। अतः अब तुम प्रसन्न बनो। इस सूर्य को और मुझे श्राप से मुक्त करो, जिससे सूर्य अन्य देश में जा सके और मैं मेरी लक्ष्मी को पुनः प्राप्त कर सकू।"
यह सुनकर उसने आज्ञा दी और सूर्य का अस्ताचल की और प्रयाण हुआ। विद्याधर राजा से भी रानी ने कहा-"तुम अपनी सम्पत्ति शीघ्र ही प्राप्त करोगे।"
ऐसा कहकर राजा को प्रसन्न किया। यह सब देखकर लोगों ने विद्याधर राजा से पूछा-"यह सब क्या था?"