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254/श्री दान-प्रदीप
तभी वहां वह विद्याधर राक्षस आया। हाथ में खङ्ग लेकर राजा क्रोध से उसके सामने दौड़ा। देवताओं के द्वारा भी न देखा जा सके-इस प्रकार का खङ्ग से खङ्ग का युद्ध हुआ। उसमें राजा ने खङ्ग के बल से उस विद्याधर को जीत लिया। अतः वह स्त्री को वहीं छोड़कर कौए के समान वहां से उड़ गया। पापी मनुष्य भले ही विद्या में बलवान हो, पर वह जीत नहीं सकता। हेमांगद को अपनी प्रिया मिल जाने से अतीव प्रसन्नता हुई और राजा के चारित्र को देखकर उसे विस्मय भी हुआ। वह राजा की स्तुति करने लगा-"अहो! मेघ के समान आपकी कृपा सर्व लोक के लिए साधारण है, क्योंकि मेरे जन्म से लेकर आज तक मैंने कभी आपको देखा तक नहीं, पर फिर भी आपने मुझ पर कितना बड़ा उपकार किया? अहो! परोपकार करने में आपकी आसक्ति अलौकिक है, क्योंकि मृत्यु के संकट में गिरकर भी आपने मुझे मेरी प्रिया दिलवायी है। अहो! आपका अलौकिक पराक्रम विश्व का उल्लंघन करनेवाला है। विद्याबलिष्ठ विद्याधर को भी आपने लीलामात्र में हरा दिया। हे महापुरुष! मैं आपको अपना सर्वस्व दे दूं, तो भी आपके ऋण से उऋण नहीं हो सकता। फिर भी सिर्फ अपने मन की खुशी के लिए मैं आपका कुछ भी प्रत्युपकार करना चाहता हूं।"
ऐसा कहकर सर्प के विष को उतारनेवाली औषधि हर्षपूर्वक राजा को देकर वह खेचर अपनी प्रिया के साथ अपने नगर में चला गया। ___ उसके बाद रत्नपाल राजा उस औषधि को लेकर पर्वत से नीचे उतरा और धैर्यपूर्वक पृथ्वीमण्डल पर भ्रमण करने लगा। इस तरह वह मूलस्थान नामक पुर में गया। पुर के बाहर धर्मशाला में उसने किसी परदेशी बीमार श्रावक को मृत्यु के मुख में गया हुआ देखा। राजा दया और धर्मबुद्धि से उसकी सेवा करने लगा, क्योंकि धर्मी मनुष्य साधर्मिकों को भाई से भी बढ़कर मानते हैं। उदारबुद्धिवाले राजा ने उसको आराधनादि क्रिया विधि के अनुसार करवायी। उसे पंचनमस्कार का स्मरण करवाया। इस प्रकार तीन दिन तक उस श्रावक की सेवा-शुश्रूषा की। वह श्रावक शुभध्यान में मरण को प्राप्त करके देव बना। सत्संग क्या-क्या फल नहीं देता? उसके बाद राजा ने उसका मरण कृत्य किया। फिर नगर में प्रवेश किया।
___ उस समय राजा ने राजमार्ग पर पटह की उद्घोषणा सुनी-“हे मंत्रवादियों! आज रात्रि में बलवाहन राजा की पुत्री को निर्दयी सर्प ने डस लिया है। राजा ने अनेक उपाय करवाये हैं। पर वह चैतन्य नहीं हुई है। वह अन्त्य अवस्था को पहुंच चुकी है। अतः जो पुरुष उस रत्नवती नामक कन्या को जीवित कर देगा, उसे राजा प्रीतिपूर्वक आधा राज्य देकर उसके साथ अपनी कन्या का विवाह करेगा।"
यह सुनकर रत्नपाल राजा ने उस पटह का स्पर्श किया और अपने पास रही हुई