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239/ श्री दान- प्रदीप
लिए तो धर्मकार्य ही घटित होता है । अतः नव यौवन से युक्त और सर्व गुणों के उपार्जन में उद्यमी हमारे रत्नपाल नामक पुत्र को आप ले जा सकते हैं।"
यह सुनकर उन्होंने मूर्त्तिमान कामदेव के समान कुमार को देखा और वे लोग अत्यन्त विस्मय को प्राप्त हुए । 'यही कन्या के योग्य है - इस प्रकार मानकर विधाता की सृष्टि की प्रशंसा करने लगे- " अहो ! विधाता की अवधानता कितनी अच्छी है! कि अनेक कार्य होने के बावजूद भी समान - समान स्त्री-पुरुष बनाने में वह कभी भूल नहीं करता ।"
इसके बाद वे प्रधान पुरुष तथा सभासद राजा से कहने लगे - "ऐसा विवेक आपके सिवाय अन्य किसी को कैसे हो सकता है?"
उसके बाद राजा ने सैन्य समूह सहित उस शुभ परिणामी कुमार को स्वयंवर के लिए शीघ्र विदा किया। कुमार भी मार्ग में सभी राजाओं को अपने आधीन करते हुए तथा अपने तेज की वृद्धि करते हुए हंसपुर के समीप पहुँच गया। यह जानकर वीरसेन राजा नम्रता के साथ उसके सामने गया । आगत का स्वागत करके उसे श्रेष्ठ आवास में उतारा। अन्य भी आये हुए राजाओं की आवभगत करके उन्हें योग्यता - प्रमाण आवासों में उतारा। समग्र सुख-सुविधाओं से संपन्न उन आवासों में वे सभी राजा अपने महल की ही तरह आनन्दपूर्वक रहे ।
फिर वीरसेन राजा ने सेवकों के द्वारा विशाल एवं भव्य मण्डप की रचना करवायी । उस मण्डप पर रहे हुए स्वर्णकलश सूर्य की तरह शोभित हो रहे थे | फिर विवाह का दिन उपस्थित होने पर वीरसेन राजा ने सभी राजाओं को स्वयंवर मण्डप में बुलाकर ऊँचे आसनों पर योग्यतानुसार बिठाया। उन सभी राजाओं के मध्य रत्नपाल कुमार तारों के मध्य चन्द्र की तरह सौंदर्य - सम्पत्ति के द्वारा विशेष रूप से शोभित हो रहा था । जैसे भ्रमरी केतकी के पुष्प पर मंडराती है, वैसे ही सभी की दृष्टि विशेषतः कुमार पर ही मंडरा रही थी ।
समय होने पर राजा ने कन्या को स्वयंवर मण्डप में बुलवाया। उस समय कौटुम्बिक स्त्रियाँ मधुर स्वर में मंगल गीत गाने लगीं। मेघ के समान गम्भीर वाद्यन्त्रों के शब्दों द्वारा आकाश गूंजने लगा। उस कन्या के सर्वांग में दिव्य श्रृंगार था । हाथ में स्वयंवर की माला थी। वह चारों तरफ से दासियों से घिरी हुई थी। उसके मस्तक पर छत्र धारण किया हुआ था। मनुष्यों के द्वारा उठाये गये विमान में वह बैठी हुई थी। इस प्रकार मूर्त्तिमान लक्ष्मी की तरह वह स्वयंवर मण्डप में आयी । उस कन्या के मण्डप में प्रवेश करते ही उसके उछलते लावण्य रूपी जल को पीने के लिए सभी राजाओं की दृष्टि एक साथ उस पर पड़ी। उस सुन्दरता से युक्त मुखवाली कन्या ने एक ही क्षण में उन सभी के हृदय का हरण कर लिया। वे जड़वत्