________________
186/ श्री दान-प्रदीप
उधर रथकार के सालों को यह सारी जानकारी हुई, तो वे परस्पर कहने लगे-"अहो! हमारे बहनोई की कुशलता तो अद्भुत और अतुल्य है।" ।
ऐसा कहते हुए हर्ष से विकस्वर नेत्रों के द्वारा उसकी प्रशंसा करने लगे। उसके अन्य ससुराल-जन भी उसे अत्यन्त बहुमान देने लगे। लक्ष्मी जिसका मुख सामने देखती हो, उसके सन्मुख कौन नहीं देखता?
एक बार अरण्य में काष्ठ की खोज करते हुए उस रथकार ने काष्ठ का एक दल देखा। उसे वह घर ले आया। विद्वानों की दृष्टि सारभूत वस्तुओं पर ही टिकती है। जगत में भ्रमण करने से खिन्नता को प्राप्त लक्ष्मी को मानो अपने घर में विश्रान्ति देने के लिए उसने उस काष्ठ का एक मनोहर पल्यंक बनाया। फिर अपनी पत्नी के साथ उस पल्यंक को बाजार में भेजा और पूर्ववत् ही शिक्षा प्रदान की। वह स्त्री भी पल्यंक को लेकर प्रातःकाल बाजार में आयी। ग्राहकों ने मूल्य पूछा, तो उसने एक लाख द्रव्य बताया। उसका मूल्य श्रवण करके कई लोग तो पल्यंक के समीप तक नहीं आये। क्या पुण्यरहित प्राणी कल्पवृक्ष को पा सकता है? मूर्खता के कारण किसी ने भी उस पल्यंक को नहीं खरीदा। अपरीक्षक रत्न की परीक्षा कर ही नहीं सकते। अथवा तो ऐसी अमूल्य वस्तु ऐसे-वैसे के घर पर कैसे रह सकती है? क्या चिन्तामणि रत्न हर किसी के हाथ में रह सकता है? सायंकाल होने पर मंत्री वहां आया और उस पल्यंक का मूल्य पूछा। उसने एक लाख द्रव्य बताया। मंत्री ने उसके गुण पूछे, तो उसने कहा-"जो रात्रि में इस पर सोयेगा, वही इसके गुण जानेगा। इस पल्यंक के गुण देखने के बाद ही आप मुझे इसका मूल्य प्रदान करना । अगर न रुचे, तो मेरा पल्यंक मुझे वापस दे देना।"
उस स्त्री के युक्तियुक्त वचन अंगीकार करके मंत्री मानो उपहार लेकर आया हो, इस प्रकार उस पल्यंक को लेकर राजा के पास आया। फिर राजा से कहा-“हे स्वामी! इस पल्यंक को उसी शिल्पी ने तैयार किया है। इसके गुणों को रात्रि में इस पर सोनेवाला व्यक्ति ही जान सकता है।" ___ यह सुनकर राजा ने उस पल्यंक की पुष्पादि के द्वारा पूजा की और सायंकाल होने पर विधिपूर्वक कौतुक के साथ उस पल्यंक पर सोया। उस पर सुखपूर्वक सोते हुए भी जैसे आजीविका की चिन्ता से दरिद्री पुरुष को नींद नहीं आती, उसी प्रकार राजा को उसका माहात्म्य देखने की उत्सुकता से नींद नहीं आयी। तभी दिव्य प्रभाव के कारण उस पल्यंक के चारों पाये विद्वानों की तरह परस्पर वार्तालाप करने लगे- “अरे!समग्र कर्म क्षीण हुए पुरुष की भाँति हम सब क्यों बैठे हैं? बुद्धिरहित पुरुषों का समय निद्रादि प्रमाद में बीतता है। आश्चर्यकारक कथा, नृत्य और संगीतादि विनोद के बिना हमें यह तीन प्रहर से युक्त