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197 / श्री दान- प्रदीप
तब मंत्री ने कहा-“हे स्वामी! यह सम्पत्ति मैंने पुण्य से उपार्जित की है। पुण्य के बिना मनुष्यों का कुछ भी शुभ नहीं होता । "
यह सुनकर राजा दिग्मूढ़ बन गया। फिर राजा ने मंत्री को विदा किया और विचार करने लगा - "मंत्री ने किसी भी प्रकार की संपत्ति बाहर से लायी हो ऐसा सुनने में नहीं आया। तो फिर उसने रत्नों से भरा थाल मुझे किस प्रकार भेंट किया? उसने तत्काल दिव्य आवास किस प्रकार बनवाया ? परदेश में भ्रमण कर-करके उसने कौनसी दिव्य वस्तु पायी है? किसी भी बहाने से मैं उस सद्बुद्धि का घर देखूं।”
ऐसा विचार करके एक बार राजा ने मंत्री से कहा - "हे मंत्री ! धर्म से संपत्ति प्राप्त करके तुमने हमें तो एक बार भी भोजन नहीं करवाया।”
तब मंत्री ने कहा - "हे स्वामी! आप तो कृपा करके आज ही मेरे घर पर पधारें ।" राजा ने कहा- "इतनी जल्दी तुम किस प्रकार तैयारी करोगे?”
उसने कहा-“धर्म के प्रभाव से मेरे सब कुछ तत्काल तैयार हो जायगा ।"
" बहुत अच्छा " - ऐसा कहकर विस्मित राजा ने उसे अनुमति प्रदान की । फिर सर्व सामन्तों, मंत्रियों व राजा के सम्पूर्ण परिवार को उसने भोजन करने के लिए बुलाया ।
'मंत्री के घर के चूल्हे में तो चूहे दौड़ते हैं - ऐसा मनुष्यों के मुख से श्रवणकर राजा अत्यन्त विस्मय को प्राप्त हुआ । फिर मध्याह्न के समय राजा मंत्री, सामन्त व अपने सर्व परिवार के साथ उस मंत्री के यहां भोजन करने के लिए आया । वहां कामकुम्भ के द्वारा प्रदत्त अमृत के समान स्वादिष्ट आहार के द्वारा उसने राजादि सर्व परिवार को भोजन करवाया । फिर चित्त को आनंद प्रदान करनेवाले दिव्य वस्त्रों के द्वारा उस मंत्री ने सभी की पहेरामणी की। यह सब देखकर आश्चर्यचकित राजा ने कहा - " हे पुण्यशाली ! तुम देशान्तर से ऐसी कौनसी दिव्य वस्तु लाय हो, जिसके प्रभाव से तुम्हे सारी मनवांछित वस्तुएँ प्राप्त हो जाती हैं?"
तब मंत्री ने कहा-' - "मुझे पुण्य के प्रभाव से कामकुम्भ प्राप्त हुआ है । "
राजा ने कहा- "वह मुझे दो ।"
मंत्री ने कहा- "यह कामकुम्भ पुण्य के आधीन है। अतः यह पापी के घर नहीं जाता। सूर्य के आधीन रहनेवाला आतप क्या सूर्य को छोड़कर रह सकता है? अगर कदाचित् यह पापियों के घर चला भी जाय, तो उल्कापात की तरह अनर्थ ही उत्पन्न करता है।"
यह सुनकर राजा ने कहा - " चाहे जो हो, पर यह कामकुम्भ तो तुम मुझे ही दो ।"
तब मंत्री ने वह कामघट राजा को दे दिया । राजा ने उसे कोष में स्थापित करवाया और सैकड़ों सुभट उसकी रक्षा में नियुक्त किये। प्रातःकाल होने पर मंत्री ने लकुट को घट