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125/श्री दान-प्रदीप
परास्त करनेवाले हजारों राजकुमारों के चित्र राजकुमारी को दिखाये गये हैं। पर कादव के प्रति हंसिनी की तरह किसी भी राजपुत्र में वह रागयुक्त नहीं बनी। पर अब जिस कुमार ने उन्मत्त हाथी से कुमारी की रक्षा की है, उसके उपकार के कारण वह उस पर रागयुक्त बनी है और उसे वरने की इच्छा रखती है। मैंने उस बहुत समझाया कि तूं राजवंश में उत्पन्न हुई है। अतः वणिक वंश में उत्पन्न पुरुष को पति के रूप में स्वीकार करना योग्य नहीं है। तब उसने मुझसे कहा कि ऐसा न कहें। वह अपने गुणों के कारण कोई राजवंशी ही प्रतीत होता है। अगर नीति से उज्ज्वल यह कुमार राजपुत्र न होता, तो दूसरों के द्वारा न हरने योग्य मेरे हृदय का यह हरण नहीं कर पाता। दूसरी बात यह है कि जिसने मेरे प्राणों का रक्षण किया है, उसे छोड़कर मैं अन्य किसी को पति के रूप में स्वीकार करूं, तो फिर कृतज्ञता का क्या? यह मेरे लिए कैसे योग्य हो सकता है?"
धात्री के मुख से सारी बाते सुनकर सद्बुद्धिहीन व औचित्यहीन राजा ने विचार किया-"हा! हा! अब यह दुष्टात्मा मेरा जामाता भी बनेगा? मैं इस भवितव्यता को उखाड़कर निर्मूल कर दूंगा, क्योंकि जो पुरुष विघ्नों से उद्विग्न न हो, उसका दैव भी रूठ जाता है।"
इस प्रकार निश्चय करके दुष्ट चित्तवाले राजा ने कपट रूपी लता की क्यारी के समान वाणी में धात्री के समक्ष आरक्षकों को बुलवाकर कहा-"प्रियमित्र के जिस पुत्र ने गजेन्द्र के उपद्रव से मेरी पुत्री का रक्षण किया है, वह महापुरुष मेरे द्वारा सन्मान करने लायक है। उसे तुरन्त बुलाकर लाओ।"
यह सुनकर आरक्षक उसके घर गये और राजा का संदेश सुनाकर साथ चलने के लिए कहा। कुमार ने विचार किया-"यह राजा मुझ पर अत्यन्त द्वेष को धारण करता है। पर सर्वत्र मेरी माता ही मेरा रक्षण करेगी।"
ऐसा सोचकर साहसपूर्वक कुमार उनके साथ यमराज के समान उस राजा की सभा में गया। राजा ने दिखावे के लिए उसका सन्मान किया। पर मन में चिन्तन चल रहा था कि मुझे इसे आज रात्रि में ही मारना है। उसने दुष्टबुद्धि से सुभटों को आज्ञा दी-"इस अभयसिंह को आज की रात्रि यहीं रखना है। आपत्ति का ज्ञाता कुमार उनसे अपनी रक्षा करता हुआ उसी समय उसी स्थान पर देव की तरह अदृश्य हो गया। उसे न देखकर सुभट चिन्तित होते हुए परस्पर कहने लगे-"हमारी आँखों में धूल झोंककर वह भाग गया है।"
यह सुनकर राजा ने विचार किया-"यह दुष्टात्मा मेरी पुत्री को लेकर भी भाग जायगा।"
इस विचार से रात्रि में वह अत्यन्त चिन्तित हो गया। अतः वह रात्रि में अपनी सोती