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147 / श्री दान- प्रदीप
किया था। उसके पिता ने उसे बाल्यावस्था से ही रत्नापुर का राज्य दिया हुआ था । उस विशाल साम्राज्य को वह एकछत्र रूप से भोगता था । उसने अपने अतुल पराक्रम के द्वारा महाबलवान शत्रु राजाओं को पराजित करके विद्याधरों के समूह के मध्य चक्रवर्त्तित्व को प्राप्त किया था ।
एक बार संसार रूपी दावानल को बुझाने में वर्षाऋतु के मेघ के समान गुरु-उपदेश को सुनकर वैराग्य से तरंगित हृदयवाला बना । सर्प के समान भयंकर क्षणभंगुर भोगों से भयभीत हुआ। अपनी कामिनियों को वह शाकिनियों के समान सुखनाशक मानने लगा । लक्ष्मी को मदिरा की तरह उन्मादकारक मानने लगा। बंधुओं को बंधन रूप जानने लगा। विषयों में उसे विष प्रतीत होने लगा। अतः उसने युवावस्था में ही रज की तरह राज्य - सम्पदा का त्याग करके संयम रूपी ऐश्वर्य को अंगीकार किया, पण्डित पुरुष आत्महित में सज्ज होते हैं। कहा भी है कि
प्रशस्याः खलु ते भोगाँस्तारुण्येऽपि त्यजन्ति ये ।
जरसा परिभूतस्तु मुच्यते तैः स्वयं न कः ? ।।
भावार्थ :- जो पुरुष युवावस्था में ही भोगों का त्याग कर देते हैं, वे वास्तव में प्रशंसनीय हैं, पर वृद्धावस्था में पराभव को प्राप्त कौनसा पुरुष स्वयं भोगों द्वारा परित्यक्त नहीं होता? अर्थात् भोग स्वयं ही उसका साथ छोड़ देते हैं ।
फिर उन वज्रवेग मुनि को गुरुदेव ने ग्रहण व आसेवन शिक्षा प्रदान की। उसके अनुसार वह चारित्र का पालन करने लगा। सिंह के समान उन्होंने दीक्षा ग्रहण की, सिंह के समान तप किया और निरन्तर दुष्कर तप का आचरण करते हुए उन्हें समुद्र को नदियों की तरह अनेक लब्धियाँ प्राप्त हुईं। उनके कफ, थूक, मलादि सभी औषध रूप हो गये, जिनके संसर्ग मात्र से सारी व्याधियाँ निर्मूल हो जाती हैं। उन्हें चारण लब्धि भी प्राप्त हुई है, जिससे इस लब्धि के कारण वे नंदीश्वर द्वीप में जाकर जिनेश्वरों को वंदन करते हैं। क्षीरास्रव, मध्वास्रव और बीजबुद्धि आदि समृद्धियाँ परस्पर स्पर्धा करते हुए उनका आश्रय करती हैं। ये वही वज्रवेग मुनि हैं, जिनके तुम दर्शन कर रहे हो । इनके चरण-कमल की रज द्वारा तूं निरोगी बनेगा ।"
इस प्रकार मुनि की महिमा का श्रवण करके बुद्धिमान तारचन्द्र कुमार अत्यन्त विस्मय को प्राप्त हुआ और आनन्दित बना। उसके बाद मुनि को भावपूर्वक नमन करके उनके चरणों से स्पर्शित रज को उठाकर उसने अपने शरीर पर मल लिया । रज के स्पर्शमात्र से उसके शरीर पर से रोगों का विकार समाप्त होने के साथ ही सिद्धरस के स्पर्श से लौह की तरह