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112/श्री दान-प्रदीप
करके उसको सुखोपभोग प्रदान किया। इस प्रकार उस चोर के लिए अत्यन्त उत्सव करके रानियों ने अपने-अपने चित्त का कौतुक पूर्ण किया। पर उस चोर का मन लेशमात्र भी खुश नहीं हुआ।
उस राजा की अन्तिम व सबसे छोटी रानी शीलवती थी। राजा ने उसके साथ विवाह करने के बाद कभी उसे देखा तक नहीं था। अतः उसके पास अत्यल्प समृद्धि थी। पर दृढ़ शीलव्रत का पालन करने के कारण वह अत्यन्त पवित्र थी। उसने भी राजा से विज्ञप्ति करवायी-“हे जीवितेश! आपको याद है कि मैं जितारि राजा की पुत्री हूं। मेरे साथ विवाह करके आपने तुरन्त ही मुझको भुला दिया। पर फिर भी सन्तोष रूपी अमृत से तृप्त होकर मैं अपने महल मे रह रही हूं। एकमात्र शील रूपी वैभव से समृद्ध होकर मैं समय का निर्गमन कर रही हूं। मैं पुण्यहीना हूं, अतः दूसरी रानियों के साथ स्पर्धा करने की मेरी कतई भावना नहीं है। पर फिर भी रानियों की कतार में होने के कारण अगर मैं इस कार्य को अंजाम न दूं, तो आपकी रानियों के मध्य मेरी गिनती नहीं होगी। अतः मैं आपसे प्रार्थना करती हूं कि इस चोर को मुझे भी एक दिन के लिए प्रदान करें।"
उसके इस प्रकार कहलाने पर राजा की स्मृति में वह रानी आयी और उसके अज्ञात गुणों से राजा का मन आकर्षित हुआ। राजा ने उसे भी अनुज्ञा प्रदान की। तब शीलवती ने उसे अपने महल में बुलवाया और कहा-"मेरे पास ऐसा कोई वैभव नहीं है, जो मैं तुम्हे दे सकू।"
ऐसा कहकर उसकी यथाशक्ति आवभगत की और उसे अभयदान प्रदान करते हुए कहा-“मैं आज से तुम्हे धर्मपुत्र के रूप में स्वीकार करती हूं। अतः तुम्हारी रक्षा करने के लिए मैं भरपूर प्रयत्न करूंगी। तुम निश्चिन्त रहो।"
यह सुनकर उस चोर ने मानो जगत की सम्पूर्ण लक्ष्मी को प्राप्त कर लिया हो, इस प्रकार से हर्षित हुआ। इससे उस रानी के स्वल्प उपचार को भी उसने कोटिगुणा माना। प्रातःकाल होने पर उस श्रेष्ठबुद्धिवाली शीलवती ने अपने धर्मपुत्र को साथ लिया और राजसभा में आयी। उस समय उस वसंत चोर को मुख हर्ष से प्रफुल्लित था, उसके नेत्र विकस्वर थे, उसके गाल फूले हुए थे, उसके दोनों खंधे उछल रहे थे। यह सब देखकर सभासद उसकी तरफ आकर्षित हो रहे थे और आश्चर्यचकित भी हो रहे थे। विकस्वर नेत्रों से उसी की और देख रहे थे। अन्य रानियाँ भी उसे देखकर ईर्ष्यापूर्वक विचार कर रही थीं कि आज शीलवती राजा के पास क्या माँगनेवाली है? तभी राजा ने उस चोर को अत्यन्त हर्षित देखकर पूछा-"अन्य सभी रानियों ने तेरा अत्यन्त स्वागत किया, सुखोपभोग दिया, पर तुझे देखकर ऐसा लगता था कि मानो तेरा सब कुछ हरण कर लिया गया है। पर आज