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71/श्री दान-प्रदीप
है, वैसी शोभा श्रेष्ठ मणि व सुवर्ण के आभूषणों से भी प्राप्त नहीं होती।
इस प्रकार चित्त में 'हेय व उपादेय का अच्छी तरह से निश्चय करके उसके कर्त्तव्य-कर्म में सर्वदा तुमलोग राजहँस की तरह बनना। मेरे परलोक-गमन के बाद तुम सभी परस्पर स्नेहयुक्त होकर एक साथ ही रहना। उसी से लोक में प्रतिष्ठा की वृद्धि होती है। परस्पर अपने-अपने औचित्य का कभी भी उल्लंघन मत करना, क्योंकि उससे लम्बे समय से अर्जित स्नेह का भी नाश हो जाता है। कभी भी स्त्रियों की क्लेशयुक्त वाणी पर विश्वास करके अपने भाइयों पर विद्वेष भाव मत लाना, क्योंकि स्त्रियों के वैसे वचन भाइयों के परस्पर स्नेह रूपी दूध का नाश करने में कांजी के समान होते हैं। इन सब के अलावा भी कदाचित् अन्य किसी कारण से तुम भाइयों में परस्पर मतभेद पैदा हो जाय, तुम्हें अलग होना पड़े, तो भी धन को लेकर लेशमात्र भी क्लेश मत करना। भाइयों में परस्पर वृद्धि को प्राप्त क्लेश स्वयं के घर में विषवृक्ष के समान व शत्रुओं के घर में कल्पवृक्ष के समान वृद्धि को प्राप्त होता है। तुम्हारे परस्पर क्लेश के निवारण के लिए मैंने हमारे घर की चारों दिशाओं में अनुक्रम से तुम चारों के लिए चार निधान स्थापित किये हैं। जब भी तुमलोगों में अलगाव की स्थिति पैदा हो, तभी तुम अपने-अपने नाम से अंकित उस निधान को ग्रहण कर लेना।" ___ इस प्रकार उन पुत्रों को शिक्षा देने के कुछ समय बाद श्रेष्ठी परलोक के लिए प्रयाण कर गये। चारों भाई पिता की मरणक्रिया करके पिता की दी हुई सीख को स्मृति में रखकर चिरकाल तक प्रेमपूर्वक एक साथ रहे। अनुक्रम से उनके पुत्र-पौत्रादि संतति भी प्राप्त हुई। एक वृक्ष से सैकड़ों शाखाओं का प्रादुर्भाव होता है। कालान्तर में पुत्र-पौत्रादि के कारणों को लेकर स्त्रियों में परस्पर विग्रह होने लगा। उनके पतियों ने उन्हें बहुत समझाया, पर वे अपने क्लेश को नहीं छोड़ सकीं। किनारों को तोड़नेवाली नदियों को रोकने में कौन समर्थ होता
तब उन भाइयों ने प्रीतिपूर्वक विचार करके स्वयं ही अलग-अलग होने का निर्णय किया और अलग हो भी गये, क्योंकि बुद्धिमान मनुष्य समय के अनुसार निर्णय लेने में माहिर होते हैं। उसके बाद वे भाई एक-दूसरे की साक्षी रखकर हृदय में रहे हुए पिता के आदेश की तरह अपनी-अपनी निधि को हर्षपूर्वक भूमि में से निकालने लगे। प्रथम भाई के घड़े में घोड़े-बैलादि पशुओं के बाल निकले, द्वितीय भाई के घड़े में से मिट्टी निकली? तृतीय 1. छोड़ने योग्य। 2. ग्रहण करने योग्य। 3. छाछादि खटाईयुक्त वस्तुएँ ।