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106/श्री दान-प्रदीप
तिरस्कृत करनेवाली, अपने मुख की सुन्दरता द्वारा पूर्णिमा के चन्द्र को भी दासता प्राप्त करानेवाली, सर्वांगसुन्दरी, युवा–पुरुषों के चित्त को मोहित करनेवाली मोहनवल्ली के समान
और अपने लावण्य के द्वारा विमानवासी देवांगनाओं को तिरस्कृत करनेवाली वे पातालकन्याएँ रहती हैं। वे कन्याएँ पराक्रम से जयलक्ष्मी का वरण करनेवाले, अपने उद्धत भुजदण्ड के पराक्रम से समग्र शत्रुओं का नाश करने में सक्षम, सर्वांग में सौभाग्य को धारण करनेवाले और श्रेष्ठ लक्षणों से युक्त तुमको देखते ही तुम्हारे पुण्य से आकर्षित होकर स्वयं ही तुम्हारा वरए करेंगी।"
यह सुनकर कुमार आश्चर्यचकित रह गया। उन पाताल-कन्याओं को देखने के लिए उसका चित्त लालायित हो उठा। पर गम्भीरता के कारण अपनी उत्कण्ठा को छिपाते हुए अन्य बातों द्वारा समय बिताते हुए कुमार ने अपने घर की और प्रस्थान किया। घर पर भी उसका मन उन कन्याओं को देखने की जिज्ञासा रूपी राक्षसी के द्वारा ग्रसित हुआ। अतः भोजनादि कार्यों में उसका चित्त शून्य बना रहा। उसकी ऐसी दशा देखकर उसके मित्रों ने पूछा-“हे मित्र! आज तुम इतने चिन्तातुर क्यों दिखायी देते हो? हमें ऐसा क्यों लगता है कि उस योगी के द्वारा कहे गये वृत्तान्त को सुनकर तुम अत्यन्त उद्विग्न हो गये हो? पर ऐसे व्यक्तियों के प्रलाप से तुम्हारा मन आकर्षित होता है-यह आश्चर्य की बात है। ऐसे पाखण्डी पुरुष मुख पर तो अमृत बरसाते हैं, पर अन्दर विष को धारण करनेवाले होते हैं। अतः उन-जैसों की वाणी पर विश्वास धारण करना सत्पुरुषों के योग्य नहीं है।" ___ यह सुनकर कुमार ने कहा-"हे मित्रों! निर्दोष जिन्दगी गुजारनेवाले उन पूज्य को हमारे पास से क्या स्वार्थ सिद्ध हो सकता है, जिससे कि वे उस प्रकार का असत्य भाषण करेंगे? वैभवादि में लुब्ध बने मनुष्यों को ही असत्य भाषण संभव है। संतोष रूपी अमृत से तृप्त योगीजन तो मृषा भाषा का दूर से ही परित्याग करते हैं। अहो! कितने पुरुष तो ऐसी मुग्ध बुद्धि से युक्त होते हैं कि दूसरों द्वारा प्रत्यक्ष देखी गयी बात को सुनकर भी उसमें कल्पित वचनों द्वारा संशय उत्पन्न करते हैं।"
इस प्रकार कुमार के वचनों को सुनकर तीनों मित्रों ने उसके हृदय के अभिप्राय को जान लिया । अतः उन्होंने मौन धारण कर लिया। प्रायः निपुण मित्र एक-दूसरे की इच्छा का अनुसरण करनेवाले होते हैं। दूसरे दिन राजपुत्र अकेला ही उस योगी के पास गया। वहां उन दोनों ने परस्पर अमृत-वृष्टि के समान वाणी के द्वारा बातचीत की। फिर कुमार ने उससे पूछा-“हे पूज्य! उस गुफा में कैसे जाया जा सकता है? कैसे पाताल-कन्याओं को पाया जा सकता है? इन आश्चर्य रूपी विशाल तरंगों के द्वारा मेरा मन आकुल-व्याकुल बन गया है। अतः मेरे मन में जरा भी शांति नहीं है।"