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प्रथमः सर्गः
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____ इस नवकोटी मरुधर देश में जोधपुर नाम का एक प्रसिद्ध नगर है । यह राठौड़वंशी राजाओं की राजधानी रहा है । यह नगर इतना सुन्दर है कि लोग उसको अनिमेषदृष्टि से देखते हुए, मानव होते हुए भी अनिमेष-देव बन जाते हैं। बाहर के आए हुए अतिथि उसको देखकर इतने आत्मविभोर हो उठते हैं कि मानो उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली हो, वे मृत्युंजय बन गए हों।
२८. आसीन्महीन्द्रमुकुट: प्रकट: प्रचण्डो, .
बीज्यो जयी विजयसिंहधराधिनाथः । यस्मात् समस्तविषयाद् व्यसनेति'रोगा, नष्टा मृगा मृगपतेरिव भीतभीताः ॥
वहां विजयसिंह नामका राजा राज्य करता था। वह तात्कालिक शासकों में मुकुट के समान, महान् तेजस्वी और क्षत्रियवंश के उच्चकुल में जन्मा हुआ था। उसके निखरते हुए तेज से उस प्रांत के सभी व्यसन, उपद्रव और रोग वैसे ही पलायन कर गए जैसे सिंह के भय से भयभीत मृगों का यूथ ।
२९. कण्टालियाख्यनगरं मरुभूषणं यद्,
व्यापारकेन्द्रमुपकण्ठपुरान्तरेषु । यत्रोर्वरैव वसुधा नहि किन्तु मर्त्यमाणिक्यखानिरपि वा सुधियां सवित्री ।
उस मरुधर में 'कंटालिया' नाम का एक नगर है। वह आसपास के गांवों का व्यापारिक केन्द्र है। वह भूमि सस्य की उत्पत्ति के कारण ही उर्वरा नहीं है, किंतु वह विद्वानों और नररत्नों की भी खान है ।
३०. तस्मिन् वसन्ति बहवो बृहदोशवंश्या,
मार्गानुसारिगुणिन: सुखिनः समस्ताः । सल्लोकनीतिनिपुणाजितवैभवाढ्या, जैना दृढा निजनिजाभिमतक्रियासु ॥
उस नगर में साजन ओसवाल वंश के अनेक लोग रहते हैं। वे मुक्तिपथ के वांछित गुणों के धारक, सुखी, लोकनीति में निपुण और प्रामाणिक रूप से अजित धन से धनाढ्य, जैन धर्मावलम्बी तथा अपने-अपने सम्प्रदाय के अभिमत क्रिया-कलापों में दृढ़ आस्था वाले हैं। १. ईतिः -उपद्रव ।