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प्रथमः सर्गः
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६२. आगन्तुकान् निशमकानतिथीन् स बल्लु- . ... ...
शाहः प्रसाहितमनाः सुमनोतिरेकैः।। सन्मानदानविधिना विससर्ज ताँस्तद्,. वाचामगोचरमुदित्वरबुद्धिभाजाम् ॥
दर्शनार्थ आगन्तुक अतिथियों का बल्लुशाह ने भी खुले दिल से कल्पनातीत सम्मान आदि विधियों से स्वागत कर उन्हें विसर्जित किया। इन “सब विधियों पर पूरा-पूरा प्रकाश डालना विशाल बुद्धि वाले धीधनों की वाणी का विषय भी नहीं बन पाता। ६३. जन्मक्रिया विधुविलोकनजागराद्या,
स्यात् संस्कृताऽथ दशमे सुदिने समेते। भावी यदेष वरभिक्षरिति प्रकृत्या, विज्ञाय भिक्षुरभिधां सुविधां चकार ।
जन्मक्रिया-चन्द्र-दर्शन, जागरण आदि आदि का भी उस समय किया जाना सम्भव सा प्रतीत होता है और जन्म के दशवें दिन 'यह भविष्य में श्रेष्ठ भिक्षु होगा' ऐसा शिशु की प्रकृति से अनुमान लगाकर ही इसका नाम भिक्षु रखा गया ।
६४. माहात्म्यमद्भुतममुष्य किमुच्यते तद्,
यस्योद्भवात्तिथिरपि क्षितिसर्वसिद्धा। मासोऽपि मांसलतमो निखिलेषु मास्सु, जातो महान् शुचि रसौ न च नाममात्रात् ।।
इस बालक के अद्भुत माहात्म्य के विषय में क्या क्या कहें ? इसका जन्म-दिन होने के कारण ही यह त्रयोदशी भी सर्वसिद्धा त्रयोदशी के नाम से भूतल में प्रसिद्ध हुई और इसके जन्म का मास होने के कारण यह आषाढ़ मास भी बड़े से बड़े दिनों वाला हो गया। संस्कृत में इस मास का नाम 'शुचि' है तो सिर्फ यह नाममात्र का ही शुचि न रहकर ऐसे महापुरुष का जन्म-मास होने के कारण वास्तव में शुचि-पवित्र हो गया। . ६५. स्थास्यामि विष्टपसमक्षविशालवक्षा,
नोत्पिञ्जलः कथमपि प्रतिपक्षलक्षः । भावीति सूचनकृते किमु पालने'ऽपि, उत्तानमेव शयनं सततं ततान ॥ १. शुचिः-आषाढ मास (-अभि० २।६८). २. उत्पिञ्जल:-अत्यधिक व्याकुल (उत्पिञ्जलः""भृशमाकुले-अभि० ३।३०) ३. पालना - हिंडोला।