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श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् नगर के निकट अच्छे प्रवाह वाली नदियों से घिरे हुए, अगणित पुष्पित एवं फलित वृक्ष रूप छत्र को धारण करने वाले, झरते हुए निर्मल झरने रूप चामरों से युक्त वे उन्नत पर्वत अपने राजत्व को स्पष्ट रूप से प्रगट करते हैं।
१८. कुत्रापि नन्दननिकञ्जवनानि यत्र,
कुत्रापि शाड्वल विशालरसालमालाः । क्वापीक्षदण्डपरिमण्डनमण्डितानि, क्षेत्राणि सर्वसमयानुफलोचितानि ॥ ____ कहीं-कहीं नन्दन वन के समान आह्लाद उत्पन्न करने वाले निकुञ्ज वन, कहीं हरे भरे आम्रवृक्षों की पंक्तियां, कहीं लहराते हुए गन्ने की घनी उपज वाले खेत- ऐसे सभी ऋतुओं के अनुकूल फल-फूल देने वाले बगीचे तथा धान्य आदि प्रदान करने वाले खेत हैं।
१९. तत्सागरबहुविधर्मुवनवनश्च,
माणिक्य चत्वरचतुष्क'सभाप्रपौधः। नेपुण्य पुण्यपणिमापणपंक्तिपूगे.' घण्टापथैः प्रसृमरं पुटभेदनं तत् ॥
वह नगर निकटवर्ती पद्माकरों, नाना प्रकार की अट्टालिकाओं, बगीचों, लाल चोकों, चबूतरों, सभाओं, प्याउओं तथा निपुणता से न्याय पूर्वक व्यापार करने वाली दूकानों की पंक्ति-समूहों एवं राजमार्गों से व्याप्त था ।
२०. उत्केशवंशजनरा नरनाकिनन्याः ,
तस्मिन् वसन्ति विलसन्ति रसन्ति रस्याः । स्फीतिप्रतीतिनयनीतिपवित्ररीत्या, व्यापारिणोऽपरिभवा विभवातिरेकाः ॥ १. शाड्वल:- हराभरा। २. माणिक्यं-लाल । ३. चतुष्क-चौराहा । ४. पूगः-समूह। ५. घण्टापथः -राजमार्ग (घण्टापथः संसरणं श्रीपथो राजवर्त्म च-अभि०
४।५३) ६ पुटभेदनम् -नगर (पत्तनं पुटभेदनम्-अभि० ४१३७) ७. उत्केशवंशः-ओसवंशीय ।