Book Title: Bhikshu Mahakavyam
Author(s): Nathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 338
________________ ३१२ २६. मन्दामन्दचलत्समीरलहरी स्पर्शेन्द्रियाह्लादिका, दिव्यादर्शविमर्श सारसुधया पुंसां मनोमोदिनीम् । क्वापि क्वापि भयावहा वनचरैः शार्दूलसिंहादिभिदुर्गे दुर्गमना घनाघनघना भ्रष्टाम्बरा चोत्पथा ॥ श्रीभिक्षु महाकाव्यम् २७. क्वाप्याखेटकजालिकालिजटिला लुण्टाक लब्धालया, क्वापि श्रेष्ठविशिष्टयौगिकयुता सन्न्यासिवर्गाश्रिता । नानावर्णविराजितोत्तमवृहच्छ्लांशशय्यान्विता, दृष्टा पर्वतमालिका रवली नाम्ना जगद्विश्रुता ॥ मेवाड में प्रवेश करते ही स्वामीजी ने विश्वविश्रुत अरावली पर्वतमाला को देखा । वह नाना प्रकार की ऊंची-नीची भूमि वाली थी । उसके ढों में बहुत वटवृक्ष थे । वह घाटों से उद्भट एवं संकीर्ण तथा विविध जलस्रोतों से परिपूर्ण थी। वह देश की रक्षा करने वाली तथा ऊंचे-ऊंचे सुन्दर मन्दिरों के सध्वज शिखरों से आकाश को छूने वाली थी । वह विविध पर्वत-कन्दराओं से युक्त तथा अत्यन्त भय उपजाने वाली और वीर पुरुषों द्वारा सम्मानित थी । वह अनेक निर्झरों के कलकलरव से युक्त, विविध सरिताओं के निर्मल जल वाली, विविध कुञ्ज - निकुञ्जों में पक्षियों के चहचहाट से गुञ्जित तथा विविध द्रुमों एवं फलों वाली थी । वह मादकता को प्राप्त सुन्दर मञ्जरियों के मुकुलों युक्त माकन्दमालाओं से आकुल तथा फूले हुए लतासमूहों से ललित एवं प्रधान पुष्पों से पुष्पित थी । वहां मयूर, शुक, कोयल आदि पक्षी क्रीडा करते थे । उनके मधुर शब्दों की प्रतिध्वनि से वह पर्वतमाला कर्णप्रिय और अकुंठित थी । वह अनेक चित्र-विचित्र दृश्यों से नेत्रों को आनन्दप्रद, विकस्कर एवं अमन्द सुन्दर सुगन्धित फूलों से घ्राणेन्द्रिय को तर्पण करने वाली और जिह्वा को आम्र आदि के रसों से रसिक बनाने वाली थी । वह वायु की मंद-मंद लहरों से स्पर्शनेन्द्रिय को आह्लादित करने वाली, दर्शक के मन में उत्तम आदर्शयुक्त विचारों के अमृत को उत्पन्न कर प्रमुदित करने वाली, कहीं-कहीं शार्दूल, सिंह आदि वनचरों से भयानकं, कष्ट से गमनयोग्य दुर्गवाली, मेघों से आच्छन्न, अत्यधिक कण्टकाकीर्ण होने के कारण वस्त्रों को फाडने वाली तथा उत्पथ मार्ग वाली थी । ( वह घाटी कहीं कहीं शिकार खेलने वालों एवं जाल बिछाने वालों से जटिल तथा लुण्टाकों को आश्रय देने वाली थी । वह कहीं कहीं श्रेष्ठ योगियों एवं संन्यासी वर्गों से आश्रित थी । वह नाना वर्ण एवं उत्तम वृहत् शैल चट्टानों की शय्या से युक्त थी ।

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