Book Title: Bhikshu Mahakavyam
Author(s): Nathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 337
________________ दशमः सर्गः २१. आषाढे सितपूर्णिमासुदिवसे दीक्षा नवीना वरा, धार्यात्प्रभुसाक्षितो निजनिजोद्धाराय वैराग्यतः । इत्थं तानभिधाय धीरिमधिया सम्बोध्य सम्बोध्य च, वर्षावासकृते पृथक् खलु पृथक् सम्प्रेषयामासिवान् ॥ 'श्रमणो ! आषाढ शुक्ला पूर्णिमा को अरिहंत प्रभु की साक्षी से तथा पूर्ण वैराग्य से अपने-अपने आत्मकल्याण के लिए नवीन दीक्षा स्वीकार कर लेना' – यह कहकर स्वामीजी ने उन सन्तों को धैर्यपूर्वक संबोधित किया और सबको चतुर्मास के लिए पृथक्-पृथक् भेज दिया । २२. सोऽपि स्त्राक् समुपागमत् स्वयमभिग्रामान् पुरान् संस्पृशन्, मेवाडाख्यसुमण्डलं मरुधरात् सम्मण्डयामासिवान् । षष्ठात् सद्गुणमन्दिरात् गुणपदात् साधुर्यथा सप्तमं, शान्त्यालंकुरुते क्रियासु कुशलः सर्वप्रमादान् जयन् ॥ ३११ स्वयं स्वामीजी ने भी मार्ग में आए हुए ग्राम-नगरों का स्पर्श करते हुए मारवाड़ से मेवाड़ देश को वैसे ही अलंकृत किया जैसे क्रिया में कुशल एवं सभी प्रमादों पर विजय पाने वाला मुनि छठे गुणस्थान से सातवें गुणस्थान को अलंकृत करता है । २३. नानानिम्नसमुन्नताऽवट' वटाघट्टोद्भटासङ्कटा, नानानीरदसन्निवासनिपुणा नीवृत्समारक्षिका । नानासुन्दर मन्दिरोच्च शिखरैरभ्रंलिहा सध्वजैनाकन्दरिकन्दरा बहुदरा सम्प्राप्तवीरादरा । २४. नानानिर्झरझर्झराद्भुतरवा नानासरित्सज्जला, नानाकुञ्ज निकुञ्जकूजितखगानानाद्रुमासत्फला । माद्यन्मञ्जिममञ्जरीमुकुलयन् माकन्दमालाकुला, फुल्लोत्फुल्ललतावितानललिता पुष्पोत्तरा पुष्पिता ॥ २५. क्रीडत्केकि सुकीर' कोकिलकलैः कर्णप्रियाऽकुण्ठिता, saकैश्चित्रविचित्रदृश्यनिकरैरानन्ददा नेत्रयोः । मद्याऽमन्दसुगन्धबन्धु रसुमैर्घाणेन्द्रियोत्तर्पणा, माकन्दादिमरन्दवृन्दरसिकां रस्नां सृजन्ती स्वयम् ॥ १. अवट:--गढा (गर्तश्व भ्रावटागाधदरास्तु विवरे भुवः - अभि० ५।७) केकी - मयूर ( केकी तु सर्पभुक् - अभि० ४।३८५) २. ३. कीर: - तोता (कीरस्तु शुको रक्ततुण्डः - अभि० ४।४०१ ) ४. रस्ता - जिह्वा ( अभि० ३।२४९ )

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