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श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् ५१. भूतापा'शुग चन्द्र विक्रमसमामानेनलुङ्कोद्भवः, . साहस्रद्वयहायनान्तसमये भस्मग्रहोऽवातरत् । ... तन्मेलः प्रभुवीरमुक्तिगमनाद् व्योमा श्ववर्णा ब्दकं, .., नान्दीवर्द्धनवत्सरः प्रचलितस्तबङ्कचूलीयतः ॥
विक्रम संवत् १५३१ में लंका मेहता प्रकट हुआ। अब इधर २००० वर्ष का भस्मग्रह समाप्त हुआ। इसका मेल इस प्रकार करना चाहिए-- बङ्कचूलिका ग्रन्थ के अनुसार वीर निर्वाण के वाद ४७० वर्ष तक नन्दीवर्धन का सम्वत् चला।
५२. पश्चाद् विक्रमहायनः प्रसृतवान् वीरादिनामावनात्, — तस्याकाशकृशानु'बाण वसुधा संख्यामिते संवति । वर्षाणि द्विसहस्रकाणि समगुस्तेभ्यो दशाब्दाहृते,
तत्र क्रूरिमधूमकेतुरलगत्तच्छेशवात्तस्य च ॥ ५३. शक्त्यल्पत्ववशात् तदा प्रकटितोऽमात्यश्च लुङ्काह्वय
स्तेनाऽकारि निरूपणातिविशदा जैनेन्द्रमार्गानुगा। नो भीतो भयदैः प्रगाढशिथिल नोग्रकष्टप्रदैस्तद्वाविंशतिसंप्रदाय उदितो प्राणार्पणात्तेन च ॥
(युग्मम्) उसके बाद विक्रम सम्वत् प्रचलित हुआ। विक्रम संवत् के १५३० वर्ष तक २००० वर्ष का भस्मग्रह पूर्ण हुआ और २००० वर्ष में दस वर्ष शेष रहे तब धूमकेतु लगा। उस समय धूमकेतु शिशु था। उसकी शक्ति अल्प थी, अतः उस समय लंका का प्रादुर्भाव हुआ और उसने जिनेन्द्रमार्ग के अनुसार शुद्ध प्ररूपणा की तथा नाना प्रकार के भय दिखाने वाले तथा प्रगाढ कष्ट देने वाले शिथिलाचारियों से वह किञ्चित् भी भयभीत नहीं हुआ। लुंका से ही बावीस सम्प्रदाय का प्रादुर्भाव हुआ। ५४. सा शुद्धा समुपस्थिता व्यवहृतेः पट्टद्वयं विश्रुता,
वृद्धे तस्य बले बलात् पुनरसज्जाता प्रवृत्तिर्बहः। अश्वा शैक्षण बाहु वत्सरमिते स्वीयप्रभावादिह,
प्रायः क्षीणबलो दशां च दशमीमैद्धूमकेतुस्ततः ॥ - व्यवहारदृष्टि से दो आचार्यों तक वह शुद्ध प्ररूपणा चली। इस ओर उस धूमकेतु का बल बढ़ने से अशुद्ध प्ररूपणा और भी बलवती हो उठी। वीरनिर्वाण के २२८७ वर्षों के बाद धूमकेतु अपने प्रभाव से प्रायः क्षीणबल एवं दशमी दशा को प्राप्त हो गया। . . .