Book Title: Bhikshu Mahakavyam
Author(s): Nathmalmuni, Nagrajmuni, Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 315
________________ नवमः सर्गः . २८९ इसलिए जो शास्त्रों के कुशल अध्येता हैं वे असंयती को दिए जाने वाले दान के समय ऐसा पूछने पर कि इसमें पुण्य है या नहीं- मुनि दोनों बातें नहीं कहते । वे ही मुनि कर्मक्षय कर निर्वाण को प्राप्त होते हैं—ऐसा शास्त्रों का कथन है। असंयती-दान सावध है, इसी प्रकार अनुकंपा के विषय में भी विवेकी व्यक्तियों को जान लेना चाहिए। १५४. यस्मिन् पुण्यं सदऽसदिति सम्भाषितुं कल्पते नो, यद् वा पापं प्रथमकरणे यत्र कुत्रापि केषाम् । तल्लिप्सून् कि ज्ञपयितुमृषिर्वा गृही पौषधादौ, . शक्यः स्यात्तत्परिचयपरलेखपत्रेगिताद्यः॥ जिस कार्य में पुण्य या पाप होता है, ऐसा वर्तमान में प्रथम करण से नहीं कहना है तो इस प्रश्न के समाधान की जिज्ञासा रखने वाले को क्या साधु या पौषध आदि में स्थित श्रावक मुंह से न . बोलकर, लिखित पत्र के द्वारा अथवा इंगित से वर्तमान में वैसा ज्ञान करा सकता १५५. आर्तध्यानाऽऽद्यऽपहृतिकृते संयताऽसंयतानां, सानुक्रोशाद्वितरणपरित्राणयोश्चेच्च पुण्यम् । तन्मद्याद्यैरपि किमु भवेद् भावहेत्वोः समाने, वाच्यं वाच्यं विपुलमतिभिः पक्षपातं विहाय ॥ ___ यदि आर्तध्यान आदि के अपनयन के लिए संयतासंयती (श्रावक) को पूर्ण अनुकपाभाव से.दिए जाने वाले दान तथा परित्राण में पुण्य होता है तो क्या मद्य आदि के अभाव में व्यक्ति के होने वाले आर्तध्यान के अपनयन में भावना पूर्वक मद्य आदि देने में भी पुण्य होगा ? भावना का हेतु दोनों स्थितियों में समान है। आप बुद्धि के धनी हैं। आप पक्षपात, से शून्य होकर हमें बताएं। १५६. पुण्योक्तेश्चेत्तदभिमननं चिन्त्यमित्थं च तद्धि, पात्रे न्यस्ते वधमुखहरः साधुरेवास्ति पात्रम् । साधोर्योग्याखिलकथनतः स्वर्णपुण्याद्यनुक्तेस्तत्राऽभे दोयदि तनुनमस्कारकादौ क्व भेदः॥ .

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