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श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् ९६. ऊर्वी प्रशस्या मधुराः सरस्याः, यस्मिन् सुवृक्षा इव पारिजाताः। . हस्त्यश्वगोधान्यधनप्रपूत्तिः, नीवृन्नरेन्द्रो नयनायको यः॥
इस देश की धरती प्रशस्य थी। यहां मीठे पानी के सरोवर, कल्पवृक्ष के समान अच्छे वृक्ष, हाथी, घोड़े, गाय, धन-धान्य आदि की प्रचुरता थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो यह देश समस्त देशों का राजा और न्यायमार्ग का नायक ही हो।
९७. रक्तेन्दुहीराभ्रमणेनिधानं, प्रादुर्भवत्सत्कलधौत'खानिः । मा अनङ्गानुकरा हि यत्र, रामा रमाधःकृतकामरामाः ।।
वहां माणिक्यमणि, हीरमणि, चन्द्रमणि आदि के निधान तथा स्वर्ण और चांदी की खाने प्रगट होती रहती हैं। वहां के मनुष्य कामदेव के समान सुंदर और स्त्रियां अपने रूप-रंग से कामदेव की पत्नी रति को भी नीचा दिखाने वाली अर्थात् अतिशय रूप-संपन्न थीं।
९८. यत्र प्रधानामितपत्तनानि, विद्योतमानानि परिस्फरन्ति । स्वर्गानिराधारतयैव किं वा, लस्तानि यानानि किमेतकानि ॥
वहां ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं से आवेष्टित बहुत ही सुन्दर भव्य नगर थे। ऐसा लगता था कि स्वर्गीय विमान भी स्वर्ग में स्थानाभाव देख यहां पर उतर आये हों।
९९. माणिक्यलक्ष्मीपुरुषोत्तमाप्ता, प्रासादरम्या जनजीवनीया। यस्मिन् सुधासिन्धुरिवोदयादिनामा पुरान्ता नवराजधानी॥
वहां 'उदयपुर' नाम की नवीन राजधानी थी। वह रत्न, लक्ष्मी, पुरुषपुंगव तथा प्रासादों से रमणीय, जनता के लिए जल की भांति जीवनदात्री तथा क्षीरसमुद्र की भांति अमृतमयी थी।
१००. शक्तित्रयेणाजितसत्प्रतापो, न्यायकनिष्ठो जगदेकवीरः।
तत्राऽस्ति राजा जितराजचक्रः, श्रीमान् महाराणकभीमसिंहः।।
वहां शक्तित्रय के धारक, सत्प्रतापी, न्यायनिष्ठ, महापराक्रमी और राजचक्र को जीतने वाले श्रीमान् भीमसिंह नाम के महाराणा राज्य करते
थे।
१. कलधौतम् -चांदी (स्याद् रूप्यं कलधौत"..- अभि० ४।१०९)