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चतुर्थः सर्गः
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___ यह देश म्लेच्छों के आक्रमण से मलिन बने हुए इस आकाश को अपनी फहराती हुई विजय ध्वजा से परिष्कृत करता रहा है तथा महादुर्ग और निर्दम्भ नरेश्वरों के कीर्तिस्तम्भों से परिवृत उत्तुंग पर्वत पर स्थित चित्तोड दुर्ग अत्यन्त सुशोभित होता रहा है।
९१. संरक्षितुं शीलमनन्तशक्त्या, प्राणाहुतिः क्लुप्तचितानलान्ता। दत्तेह कीत्त्यै सुसतीसहस्रः, साकं महाराणकपद्मिनीभिः ।
यह वही चित्तोड है, जहां महारानी पद्मिनी के साथ हजारों नारियों ने अपने सतीत्व की रक्षा तथा नारीत्व की कीत्ति के लिए अपनी अनन्त शक्ति को संजोकर जाज्वल्यमान चित्ता में हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।
९२. देशो विशेषो विषयान्तरेषु, स्फूर्जज्जयश्री:पुरुषोत्तमो यः। स्वातन्त्र्यमन्त्राप्तयशोभिरेष, क्षोणीश्वराणामिव चक्रवर्ती ॥
मेवाड़ देश अन्यान्य देशों से विशिष्ट था। यहां के पुरुषोत्तम महाराणा ने अनेक बार जय प्राप्त की थी। अपने स्वतंत्रता के मंत्र से प्राप्त यशकीर्ति से यह देश राजाओं में चक्रवर्ती की भांति अग्रसर था ।
९३. ये कातरास्तेऽपि महोग्रवीराः, स्युर्यस्य वृत्तप्रतिबिम्बमात्रात् । ख्यातो महाराणकसत्प्रतापसिंहो नृसिंहोप्यजनिष्ट यत्र॥
जिसके जीवन चरित्र का पठन व श्रवण करने मात्र से और जिसके तेजस्वी प्रतिबिम्ब को देखने मात्र से ही कायर भी महान् वीर बन जाता है, ऐसे लब्धख्याति नरसिंह महाराणा प्रताप भी यहीं हुए थे।
९४. आर्यत्वहिन्दुत्ववशासुवृत्तसंस्कारसंरक्षक एक एव । वीराग्रणीनां निकषायमाणो, दीपायमानोऽरिपतङ्गकानाम् ।।
यह देश आर्यत्व, हिन्दुत्व, कुलीन स्त्रियों के सतीत्व तथा उत्तम संस्कारों की रक्षा के लिए बेजोड था, अकेला ही था। यह वीराग्रणी व्यक्तियों के लिए निकषपट्ट तथा शत्रुरूप पतंगों के लिए दीपकतुल्य था।
९५. कैलाशसङ्काशगिरीशगङ्गास्रोतस्विनीनन्दनकाननाद्यैः ।
निःशेषदेशेषु विभाति जम्बूद्वीपो यथा द्वीपगणेषु गम्यः ॥
___ यह देश कैलाश गिरि के समान उत्तङ्ग शिखरों से, गंगा की तरह विशाल नदियों से, नन्दन वन के अनुरूप सुन्दर उद्यानों से समस्त देशों से निराला ही प्रतीत हो रहा था जैसे कि समस्त द्वीपों में जम्बू द्वीप ।