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वर्ण्यम
प्रस्तुत सर्ग में भिक्षु का विवाह, पत्नी का वर्णन, व्यवसाय में संलग्न होना, गुरु की खोज, यतियों द्वारा संघयात्रा, अहमदाबाद में लंका महेता का निवास, आगमों का लिपीकरण, रात की प्रति और दिन की प्रति, जैन आचार का वास्तविक बोध और यतियों की शिथिलता का अवबोध, ४४ व्यक्तियों के साथ लंका महेता का वि. सं. १५३१ में प्रवजित होना, सबको २२ टोलों में विभक्त करना, आचार्य रुघनाथजी के साथ भिक्षु का परिचय और उनको गुरुरूप में स्वीकार करना, विरक्ति और पत्नी को प्रतिबोध, दंपती द्वारा ब्रह्मचर्यव्रत का ग्रहण, दोनों की साथ-साथ प्रव्रज्या-ग्रहण की आकांक्षा आदि-आदि विषयों का सुन्दर प्रतिपादन है।