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श्रीभिक्षु महाकाव्यम्
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६६. इत: स्फुरद्गुर्जर देशभूषा, पूषा पुराणामहमन्दवादः । लूंकामुहत्ता इति नाम तत्र श्रेष्ठी वरिष्ठो जिनमार्गनिष्ठ: ।
गुर्जर देश में उसका अलंकरणभूत अहमदाबाद नामक एक सुन्दर और प्रमुख नगर है, जहां जैन धर्म के प्रति श्रद्धा रखने वाला लूंका मेहता' नामक ख्यातनामा सेठ था ।
६७. मिथ्यात्वपाषण्डविलोप कत्वाल्लुम्पाकसंज्ञाप्रथनं पृथिव्याम् । विरोधिभिर्गढ विमूढवत्तैर्दुष्टार्थतः पूत्क्रियते स एषः ॥
मिथ्यात्व और पाखण्ड का लोप करने वाला होने के कारण वह लोक भाषा में 'लुम्पाक' नाम से प्रसिद्ध हुआ, पर विपक्षियों ने उसे धर्म का लोप करने वाला मानकर अनुचित अर्थ करते हुए उसे 'लुम्पाक' (लुटेरे ) के नाम से पुकारा ।
६८. भस्मोडुशापाज्जिनसाधुपाशैर्जेनं
मतं जर्जरितं
प्रतीपम् ।
स्थेयै निकृष्टैर्यदि वा नियुक्तः, सन्यायराज्यं च यथा हि दुर्गम् ॥
उस समय भस्मग्रह के अभिशाप से वीतराग देव के विशुद्ध मार्ग को शिथिलाचारियों ने वैसे ही जीर्ण-शीर्ण एवं विपरीत बना दिया था, जैसे निकृष्ट मध्यस्थों और राज्य कर्मचारियों द्वारा न्याय सहित राज्य और दुर्ग जीर्ण-शीर्ण बना दिया जाता है ।
६९. श्रद्धाऽऽहंती तत्र सुदुर्लभाऽभूत् सुदुर्लभाः शुद्धयमाश्च सन्तः । steerarita विपत्तिभल्ली, मरो मराला' इव मुत्प्रवालाः ॥
उस समय आर्हती - वीतराग भगवान की शुद्ध श्रद्धा वैसे ही दुष्प्राप्य हो रही थी जैसे कि समस्त विपदाओं का विनाश करने वाली कल्पलता का मरुस्थल में प्राप्त होना । तथा उस समय मरुभूमि में आनन्दोत्पादक राजहंस की भांति महाव्रतधारी शुद्ध साधुओं के दर्शन भी सुदुर्लभ हो रहे थे ।
७०. महाव्रतानां प्रलये तदानीमणुव्रतानां च कथैव का स्यात् । सीमाच्युतेऽन्धौ क्व जगद्व्यवस्था, क्व तारको वा परिवारको वा ॥
१. स्थेय: - साक्षी ( साक्षी स्थेय: .. ..अभि० ३।५४६ ) २. नियुक्तः - राज्य कर्मचारी ।
३. मराल : - हंस (हंसेषु तु मरालाः स्युः - अभि० ४।३९१ शेष )